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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू. २१ यमका राजधान्योर्वर्ण नम् २३१ 'तेसि णं चेइय रुक्खाणं उप्पि अट्टमंगलया बहवे झया छत्ताइच्छत्ता' छाया-तेषां खलु चैत्यवृक्षाणामुपरि अष्टाष्टमङ्गलकानि बहवो ध्वजाः छत्रातिच्छत्राणि' इति, व्याख्या छायागम्या, चैत्यवृक्षवर्णनं चैत्यस्तूपवद् बोध्यम् । इति चैत्यवृक्षवर्णनम् । अथ महेन्द्रध्वजावसरः-'तेसि णं चेइयरुवखाणं' इत्यादि-'तेसि गं' तेषां खलु पूर्वोक्तानां 'चेइयरुक्खाणं पुरओ' चैत्यवृक्षाणां पुरतः-अग्रे 'ताओ' ता:-पूर्वोक्ताः 'मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' मणिपीठिकाः प्रज्ञप्ताः, तासां म नमाह-'ताओ णं मणिपे. याओ जोयणं आया. मविक्खंभेणं' ताः खलु मणिपीठिकाः योजनमायामविष्कम्भेण दै--विस्ताराभ्याम् 'अद्धजोयणं' अर्द्ध योजनम्-योजनस्यार्द्ध 'बाहल्लेणं' बाहल्येन-पिण्डेन, 'त.सि णं उप्पि' तासां मणिपीठिकानामुपरि पत्तेयं२' प्रत्येकम् २ एकस्यामेकर.म् 'महिंद झा पण्णत्ता' गहेन्द्र ध्वजाः प्रज्ञप्ताः, ते मानमाह-'ते णं' इत्यादिना-'ते' ते अनन्तताः खलु महेन्द्र ध्वजाः 'अट्ठमाइ' अष्टिमानि-सार्द्धसप्त 'जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन-उन्नतत्वेन 'अद्धकोसं' अर्द्धक्रोशम्-क्रोशस्यार्द्धम् 'उन्हेणं' उद्वेधेत-उण्डत्वेन 'अद्धवृक्ष के उपर में आठ, आठ, मंगलक अनेक ध्वजाएं, एवं छत्रातिछत्र कहे हैं । ॥ चैत्यवृक्ष का वर्णन समाप्त ।। ___अब महेन्द्र ध्वज का वर्णन किया जाता है-'तेसिंणं चेइयरुस्खाणं पुरओ' पूर्वोक्त चैत्येवृक्ष के आगे 'ताओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' वे पूर्वोक्त मणिपीठिकाएं कही है। 'तामोणं मणिपेढियाओ जोयणं आयामविखंभेणं' वे पूर्वोक्त मणिपीठिकाएं एक योजन का आयाम विष्कंभ-लंबाई चोडाइ वाली एवं 'अद्ध जोयणं बाहल्लेणं' आधे योजन की बाहल्यवाली कही है 'तामिणं उम्पि' वे मणि पीठिका के ऊपर 'पत्तेयं२,' प्रत्येक के ऊपर 'महिंदज्झया पन्नत्ता' महेन्द्रध्वजाएं कही गई हैं। 'तेणं' वे महेन्द्रध्वजाएं 'अद्धहमाई' साडे सात 'जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' योजन की ऊंची कही है। 'अद्धकोसं उन्हेणं' आधे कोस की उडाई वाली है। यहां आधा कोस का माप एक सहस्र धनुष जितना ले। उसी प्रकार ઉપર આઠ આઠ મંગલક અનેક ધજાઓ તેમજ છત્રાતિછ હેવાનું કહેલ છે. ચૈત્યવૃક્ષનું વર્ણન સમાપ્ત वे भरेन्द्र पननु वन ४२चामा या छ -'तेसिणं चेइयरुक्खाणं पुरओ' से ...वृक्षानी म 'ताओ मणिपेढियाओ पण्णत्ताओ' से पुति म पाह। ४९ छे. 'ताओणं मणिपेढियाओ जोयणं आयामरिक्खंभेणं' से पूर्वात मणिषीयाना मा.म सन १४ मे योगनर ४ छ. तर 'अद्ध जोयणं बाहल्लेणं' २ यौन २८मा विस्तारवाणी हेस छे. 'तेसिणं उप्पि' से मणिनी ५२ 'पत्तेय' ४२४ना ७५२ 'महिंदज्झया पण्णत्ता' भडन्द्र पन्तये। इस छ. 'तेणं' से भडन्द्र पन्तमा 'अद्धदमाई' सा। सात 'जोयणाई उद्ध उच्चत्तेणं' म स २८दी थी छे. महीयां मर्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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