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________________ १०० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहि य वणसंडे हिं संपरिक्खित्ते' रुचकसंस्थानसंस्थितः सर्व रत्नमयोऽच्छः, उभयोः पार्श्वयोः द्वाभ्यां पद्मवरवेदिकाभ्यां द्वाभ्यां च वनषण्डाभ्यां संपरिक्षिप्त:-'महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्ययस्स उप्पि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' महाहिम वतः खलु वर्षधरपर्वतस्योपरि बहुसमरमणीयो भूमिभागः प्रज्ञप्तः, भूमिभागवर्णनं षष्ठसूत्रतो बोध्यम् , 'जाव णाणाविह पंचवण्णेहिं मणीहि य तणेहि य उपसोभिए जाव आसयंति सयंति य' यावत् नानाविधपञ्चवर्णैः मणिभिश्च तृणैश्चोपशोभितो यावदासते शेरते च, तथा यावद् आसत इत्यत्रत्य यावत्पदेन सङ्ग्राह्याणां पदानां स सङ्ग्रहोऽर्थः षष्ठसूत्रादेव ज्ञेयः॥.११॥ सव्वरयणामए अच्छे उभओ पासि दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिय वणसंडेहि संपरिक्खित्ते' इसका धनुः पृष्ठ दक्षिण दिशा में परिक्षेप की अपेक्षा ५७२९३ १० योजन प्रमाण है रुचक का जैसा संस्थान आकार होता है वैसा ही इसका आकार है यह सर्वात्मना रत्नमय है आकाश और स्फटिक के जैसा यह निर्मल है इसको दोनों ओर दो दो पद्मवरवेदिकाएं है और दो दो वनषण्ड है 'महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उपि बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' महाहिमवान वर्षधर पर्वत के ऊपर का जो भूमिभाग है वह बहुसमरमणीय है 'जाव जाणाविह पंचवण्णेहिं मणीहिं य तणेहिं य उवसोभिए जाव आसयंति सयंति य' यावत् यह अनेक प्रकार के पंचवर्णवाले मणियों से और तृणों से उपशोभित है यावतू यहाँ अनेक देव और देवियां उठती बैठती रहती है और शयन करती रहती हैं। यहां पद्मवर वेदिका और वनषंड का वर्णन पंचम सूत्र से जान लेना चाहिये भूमिभाग का वर्णन छठे सूत्र से और यावत्पद संगृहीत पदों का ग्रहण छठे सूत्र से जाननाचाहिये ।। सू० ११॥ सत्तावणं जोयणसहस्साई दोब्णिय तेणउए जोयणसए दसय एगूणवीसइभाए जोयणस्स परिक्खेवेणं रुयगसंठाणसंठिए सव्वरयणामए अच्छे उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइयाहिं य दोहिय वणसंडेहि संपरिक्खित्ते' मेनु धनुः पृष्ठ क्षण शाम परिक्ष पनी अपेक्षाये પ૭ર૩ ૧૭ જન પ્રમાણ છે. રુચકને જેનું સંસ્થાન–આકાર હોય છે તેજ આકાર એનો છે. એ સર્વાત્મના રનમય છે. આકાશ અને સ્ફટિકવત્ એ નિર્મળ છે. એની બને त२५ ५५५२ ६४ामे। छ भने ५० वनमा छ. 'महाहिमवतस्स णं वासहरपव्वयरस उप्पि वहसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते' भडिभवान् ध२ ५ तना ५२ने। २ भूमिला छत मसभरणीय छे. 'जाव णाणाविहपंचवण्णेहिं मणिहिं य तणेहिं य उवसोभिए जाव आसयंति सयंति य' यावत् से सने ५२ पाय वर्णावा मणिमाथी भने ખૂણેથી ઉપરોભિત છે. યાવત્ અહીં અનેક દેવ અને દેવીઓ ઉડતી બે પતી રહે છે અને શયન કરતી રહે છે. પદ્મવેર વેદિકા અને વનડનું વર્ણન પંચમ સૂત્રમાંથી જાણી લેવું જોઈએ. ભૂમિભાગનું વર્ણન છ સૂત્ર દ્વારા અને યાવત પદ સંગૃહીત પદ્યનું ગ્રહણ છઠા સત્રમાંથી જાણી લેવું જોઈએ. જે ૧૧ છે Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003155
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1977
Total Pages798
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size24 MB
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