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________________ ९५६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे स्राणि द्वात्रिंशत्सहस्त्रसंख्यकान् राजवरान् सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य 'पडिविसज्जेइ' प्रतिविसर्जयति स्ववासगमनाय आज्ञापयति स भरतः 'कारिता सम्माणिता' तान् राजवरान् सत्कार्य सम्मान्य च ' सेणावहरयणं सक्कारेइ सम्माणे ' सेनापतिरत्नं सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य च 'जाव पुरोहियरयणे सक्कारेइ सम्माणे ' यावत् पुरोहितरत्नं सरकारति सम्मानयति अत्र यावत्पदात् गाथापतिरत्नं वर्द्धकिरत्नं च ग्राह्यम् "सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य च ' एवं तिष्णिसद्वे सूवयारसए अट्ठारस सेणिप्प सेणीओ सक्कारेइ सम्माणे ' एवम् उक्तरीत्या त्रीणि षष्टानि षष्ठयfarara aartaafन त्रिषष्ट्यधिकशतसंख्यकान् सूपकारान् इत्यर्थः तथा अष्टादशश्रेणिश्रेणी: च सत्कारयति सम्मानयति 'सक्कारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य च 'अण्णे य बहवे राईसरतलवर जाव सत्यवाप्यभिइओ सक्कारेइ सम्माणे ' अन्यांश्च राजाओं का सत्कार एवं सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ) उनका सत्कार सन्मान करके फिर विसर्जित कर दिया (पडिविसज्जित्ता ) इन्हें विसर्जित करके (सेणावरयणं सक्कारेह, सम्माणेइ) फिर उस भरत नरेश ने सेनापतिरत्न का सत्कार और सन्मान किया (सक्कारिता सम्माणित्ता जाव पुरोहियरयणे सक्कारेइ सम्माणेइ) सत्कार सन्मान करके उसे विसर्जित कर दिया इसके बाद उसने गाथापतिरत्न का और बर्द्धकिरत्न का सत्कार सन्मान किया इन्हें सत्कृत और सम्मानित कर विसर्जित कर दिया बाद में उसने पुरोहित रत्न का सत्कार और सम्मान किया फिर उसे भी विसर्जित कर दिया ( एवं तिणिसट्टे सुवयारसए अट्ठारस सेणिपसेणीओ सक्कारेश, सम्माणेइ) इसी तरह उसने ३६० सुपकारों को सत्कृत और सम्मानित किया और उन्हें विसर्जित कर दिया १८ श्रेणि प्रश्रेणीजनों को सत्कृत सन्मानित कर विसर्जित कर दिया (अण्णेय बहवे राईसर तलवर जाव बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ) देवाने विसति अरीने पछी भरत नरेश ३२ डलर राजमोनो सत्र भने ते सर्व सन्मान यु (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ) तेभने। सत्हार सेने ते सर्वांनुं सम्मान उरीने भरत रान्नखे तेमने विसर्जित दीघा (पडिविसज्जित्ता) भने तेभने त्रिसति श्रीने (सेणावहरयणं सकारे, सम्माणेइ) पछी ते भरत नरेशे सेनापतिरत्न नो सत्र अने तेमनुं सन्मान ठयु मने (सक्कारिचा सम्माणित्ता जाव पुरोहियरयणे सक्कारेइ सम्माणेह) यावत्सत्र तेभन सन्मान કરીને તેમને વિસર્જિત કરી દીધા. ત્યાર માદ તેણે ગાથાપતિ રત્ન અને વ કિન અને પુરાહિત રત્નના સત્કાર અને સન્માન કર્યુ” અને તેમને સત્કૃત અને સન્માनित पुरीने विसर्भित पुरी हीधा ( एवं तिण्णिसट्टे, स्वयारसप अट्टारस सेणिप्पसेणी ओ कारे, सम्माणे३) या प्रमाणे तेथे ३६० सूपाराने સત્કૃત અને સન્માનિત કર્યાં અને ત્યાર બાદ તેમને વિસર્જિત કરી દીધા. આ પ્રમાણે ૧૮ શ્રેણે પ્રશ્રેણીજનાને महद्भुत भने सन्मानित हुर्ष्या अने त्यार माह तेभने विसभित उरी हीधा. ( अण्णे य बहवे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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