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________________ Navavan जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे त्यवेटपीठमईक नगरनिगम श्रष्ठि सेनापति तथा सार्थवाह प्रभृति पदात् दतसन्धिपाल एतानि पदानि ग्राह्यानि एतेषां व्याख्यानम् एतत् सूत्राव्यवहिते सप्तविंशतितमे सूत्रे द्रष्टव्यम् 'माकारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सम्मान्य 'पडिविसज्जेइ प्रतिविसर्जयति निजवासगमनाय सर्वान् आदिशतीत्यर्थः, अथ स पटखंडाधिपतिः श्री भरतो महाराजा यावत् परिच्छदः यथा वासगृहं प्रविशति तथा माह 'इत्थीरयणेणं इत्यादि इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उडुकल्लाणिया सहस्सेहि बत्तीसाए जणवयम्लाणिया सहस्सेहिं बत्तीसाए बत्तीसइबदेहि णाडयसहस्सेहि सद्धि संपरिबुडे भवणवरवडिसगं अईइजहा कुबेरोव्व देवराया केलाससिहरिसिंगभूयंति' स्त्रीरत्नेन सुभद्रया तथा द्वात्रिंशत्संख्याका ऋतुकल्याणिका सहस्रैः द्वत्रिंशत् सहस्रसंख्यायुक्ताभिः अमृतकन्यात्वेन सदा ऋतुषु षट्सु कल्याणीभिः राजकन्याभिः तथा द्वात्रिंशता जनपदकल्याणिका सहस्त्रैः द्वात्रिंशत्सहस्त्र संख्यायुक्ताभिः जनपदाग्रणी कल्याणिकाभिः राजकन्याभिः, तथा द्वात्रिंशता द्वात्रिंशद ब? द्वात्रिंशत्पात्र युक्तैः नाटकसहस्त्रैः द्वात्रिंशत्पात्रबद्ध द्वात्रिंशत्सहस्त्रसंख्यकनाटकैः सार्द्ध संपरिवृत्तः वेष्टितः भवनवरावतंसकं श्रेष्ठभवनावतंसकं स्वप्रधान राजभवनम् अत्येति प्रविशति स भरतः तत्र मंत्री महामंत्री गणक दौवारिक, अमात्य, चेटपीठमर्दक, नगर निगम श्रेष्ठी, सेनापति दूत सन्धिपाल इन सबका ग्रहण हुआ है इन पदों की व्याख्या २७ वे सूत्र में कर दी गई है। (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ) सत्कार सन्मान करके फिर भरत राजा ने इन्हें अपने २ स्थान पर जाने की आज्ञा दे दी (इत्थीरयणेणं बत्तीसाए उड्डुकल्लाणिया सहस्सेहिं वत्तीसाए जणवयकल्लाणिया सहस्सेहिं बत्ती बदेहि गाउयसहस्सेहिं सद्धि संपरिवुडे भवणवरवहिंसर्ग भईइ नहा कुबेसेव्व देरावया केल ससिंहरिसिंगभूयंति) इसके अनन्तर सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न एवं ३२ हजार ऋतुकल्याणिकामों से छ हो ऋतुमों में आनन्ददायनी राजकन्यामों से ३२ हजार जनपदाग्रणियों की कन्याओं से एवं ३२-३२ पात्रों से संबद्धित ३२ हजार नाटकों से युक्त हुमा वहकुबेर के जैसा भरत राजा ने कैसगिरि के शिखर के तुल्य अपने श्रेष्ठ. भवनावतंसक के भीतर अपने - प्रधान रानभवन के भीरत प्रवेश किया पेट, पीठमर्दक, नगरनिगम श्रेष्ठि सेनापति संघिपाल मेसहोड या छ. ये પદોની વ્યાખ્યા ૨૭માં સૂત્રમાં કરવામાં આવી છે. (सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ) सर्वन सततम सम्मानित ४शन श्रीमत साये मनपातपाताना स्थान ५२ भवानी माज्ञा आपी. (इत्थिरयणेणं बत्तीसाप उडकल्लाणियासहस्सेहिं बत्तीसाप जणवयकल्लाणियासहस्सेहिं बत्तीसहबद्धहिं णाडय सहस्सेहिं सद्धि संपरिबुडे भवणवरवडिंसगं अईइ नहा कुबेरोव्व देवराया केलाससिहरि सिंगमयति) त्या२ मा सति सुभद्रा नाम श्री २त्नथी, ३२ M२ *तुयायियोथी । તુઓમાં આનંદદાયિની રાજકન્યાઓથી, ૩૨ હજાર જનપદાગ્રણીઓની કન્યાઓથી તેમજ ૩૨-૩૨ પાત્રથી સંબદ્ધ ૩૨ હજાર નાટકથી સમન્વિત થયેલ અને કુબેર જે લાગતે તે ભરત રાજા કૈલાસ ગિરિના શિખર તુલ્ય પિતાના શ્રેષ્ઠ ભવવતંકની અંદર Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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