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________________ ८४७ प्रकाशिका टीका १०३ वक्षस्कारःसू०२६ दक्षियर्द्धगतभरतकायेवर्णनम् पट्टविही णाडगविही कबस्स य चउव्विहस्स उप्पत्ती। संखे महाणिहिंमी तुडिअंगाणं च सव्वेसि ॥९॥ चक्कट्ठ पइट्ठाणा अठुस्सेहाय णव य विक्खंभा । बारस दीहा मंजूससंठिआ जण्हवीइ मुहे ॥१०॥ वेरुलिअ मणि कवाडा कणगमया विविहिरयणपडिपुण्णा । ससिसुरचक्कलक्खण अणुसम वयणोववत्ती वा ॥११॥ पलिओवमट्टिईआ णिहि सरिणामा य तत्थ खलु देवा । जेसिं ते आवासा अक्किज्जा आहि वच्चाय ॥१२॥ एए णव णिहि रयणा पभूय धणरयण संचय समिद्धा। जेव समुपगच्छंति भरहाविव चक्कवट्टीणं ॥१३॥ तएणं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ एवं मज्जणघरपवेसो जाव सेणिपसेणि सदा वणया जोव गिहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिमं करेइ, तएणं से भरहे राया णिहिरयणाणं अठ्ठाहियाए महामहिमाए णिवत्ताए समाणोए सुसेणं सेणावइरयणं सदावेइ, सदावित्तो एवं वयासी गच्छण्णं भो देवाणुप्पि या ! गंगा महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दुच्चंपि सगंगासागागिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेहि ओअवित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहित्ति । तएणं से सुसेणे तंचेव पुत्ववेणियं भाणियव्वं जावओअवित्ता तमाणत्तिय पच्चप्पिणइ पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाई भुञ्जमाणे विहरइ । तएणं से दिव्वे चक्करयणे अन्नया कयाइ आउह घरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स संपरिबुडे दिवतुडिय जाव आपूरेते चेव विजयखंधावार णिवेसे मज्झं मज्झेणं णिग्गच्छइ, दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं विणीयं रायहाणि अभिमुहे पयाए यावि होत्था।तएणं भरहे राया जाव पासइ पसिताहठ्ठतुट्ठ जोव कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ महावित्ता एवं वयोसी-खिप्पोमेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति ॥ सू०२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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