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________________ ७८६ जम्बुद्वोपप्रतिसूत्रे कारणं भवन्ति गाथापतिरत्नस्तु प्रधानम् नहि प्रधानोऽप्रधानं तिरस्करोति किन्तु तत्सहकारेणैव कार्य करोति अर्थात् चर्मरत्नस्यैकदेशे बीजवपनं करोति तावतैव सकलकार्यस्य सिद्धिर्भवतीतिभावः । अतएव पुनः कीदृशम् 'सुकुसले' सुकुशलम् अतिनिपुणं निजकार्य - विधाविति 'गाहारयणे ति सञ्चजणवीस्सुअगुणे' गृहपतिरत्नमिति सर्वजन विश्रुतणम्, तत्र गृहपतिरत्नम् इति अमुना प्रकारेण सर्वजनेषु विश्रुताः विख्याताः गुणाः यस्य तत्तथा ईदृश विशेषणविशिष्टं गृहपतिरत्नं यदवसरोचितं कृतवान् तदाह - 'तरणं' इत्यादि । 'तणं से गाहावरयणे भरहस्स रण्णो तदिवस पइण्णणिष्फाइअइआणं सवण्णा अणेगाई कुम्भसहस्सा उबट्टवेइ" ततः चर्मरत्नच्छत्ररत्न सम्पुट संघटनानन्तरं खलु तद् गृहपतिरत्नं भरतस्य राज्ञः सएव दिवसस्तदिवसस्तस्मिन् प्रकीर्णकानाम् उप्तानां निष्पादितानां परिपाकदशाः प्रापितानां पूतानां निर्बुसीकृतानां सर्वधान्यानाम् अनेकानि 'कुम्भसहस्राणि' कुम्मानां राशिरूपमानविशेषाणां सहस्राणि उपस्थापयति उपढौ - की अपेक्षावाले क्यों हुए इसलिये यह मानना चाहिये कि मौजूद भी चर्मरत्नादिकतो गोण कारण थे और गाथापति प्रधान कारण था प्रधान कारण अप्रधान - गौण कारण का तिरस्कार नहीं करता है किन्तु उनकी सहायता के बल से हो अपना कार्य करता है यह गाथाप्रति चर्मरत्न के एकदेश में ही बीजवपन करता है परन्तु इतने से हो सकल कार्य की सिद्धि हो जाती है यह गाथापति रत्न सकुशल था इसी कारण अपने कार्यमें बहुत अधिक निपुण कहा गया है ( गाहावरयत्ति सञ्वजणवीस्सु गुणे ) इस तरह का सर्वजनों में प्रसिद्ध हैं गुण जिसके ऐसा यह गाथापति होता है इन पूर्वोक्त विशेषणों से विशिष्ट इस गाथापति रत्न ने उस अवसर पर जो किया उसे (तएण से गाहावइरयणे ) इत्यादि सूत्र द्वारा सूत्रकार ने प्रकट किया है - इसमें यह बतलाया है कि जब चर्मरत्न और छत्ररत्न इन दोनों का मिलान हो चुका तब उस गृहपतिरत्न ने भरत महाराजा के लिये उसीदिन बोये गये और उसदिन पक कर तैयार होने पर काटे गये तथा निर्बुस किये गये समस्त धान्यों के हजारों कुम्भ अर्पणकर दिये कुम्भ यह एक શ્રીની અપેક્ષાવાળા કેમ થયા. એથી આમ માનવું જોઈએ કે ચમ રત્નાદિકની વિદ્યમાનતા તા ગૌણ કારણે હતા અને ગાથાપતિ પ્રધાન કારણ હતા. પ્રધાન કારણુ અપ્રધાન એટલે કે ગૌણુ કારણુ ના તિરસ્કાર (મનાદર) કરી શકે નહી. પણ તેમની સહાયતાનાં મળેજ પેાતાનુ કામ કરે છે. એ ગાથાપતિ ચમ રત્નના એક દેશમાજ ખીજવપન કરે છે પણુ એટલા માત્ર भी ? सल अर्यानी सिद्धि था लय छे से गाथा पतिरत्न- (सुकुसले) मेथी पोताना अर्थभां अतीव नियुष्य वामां आवे छे. ( गाहावइरयणे ति सव्वजणवीस्सुअगुणे) એવું સવાઁજના માં સુપ્રસિદ્ધ છે. ગુણ જેના છે એવા એ ગાથાપિત હાય છે. એ પૂર્વીકત વિશેષણેાથી વિશિષ્ટ એ गाथा पतिरत्न ते अवसरे यु तेने (तरण से गाहा हरयणे) त्याहि सूत्र वडे सूत्रारे ४८ अरे छे. मां थे अट वामां आवे छे જ્યારે ચમ રત્ન અને છત્રરત્ન એ બન્ને રત્નાનુ મિલાન થઇ ગયું ત્યારે ત ગૃહપતિરત્ને ભરત રાજા માટે તે જ દિવસેવાવેલ અને તે જ દિવસે પકવીને તૈયાર થયેલા તેમજ લલણી Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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