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________________ ७२८ जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्तिसूत्रे ईस अणेगखभसयसण्णिविट्रे जाव सहसंकमे करेइ' क्षिप्रमेव उन्मग्ननिमग्नजलयो महानद्योः अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टौ यावत् अचलौ अकम्पौ अभेद्य कवचौ सालम्बनबाहो पर्वरत्नमयौ सुखसंक्रमो सेतू-सेतुद्वयं करोति 'करित्ता' कृत्वा जेणेव भरहे राया तेणेव उनागच्छइ' यत्रय भरतो राजा तत्रैव तत् वर्द्धकिरत्नम् स वर्द्धकिः उपाग च्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'जाव एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ' यावत् पूर्वोक्ताम् एताम् राज्ञोक्तप्रकारिकाम् आज्ञप्तिकां (आज्ञां) प्रत्यर्पयति समर्पयति, ननु उन्मग्नजला जलस्थोन्मज्जकत्वस्वभावसिद्धत्वात् कथं तत्र संक्रमार्थकशिलास्तम्भादिन्यासः मुस्थिरो भवति ? सच दीर्घपट्टशालाकारो न च जलोपरि काष्ठादिमयः सम्भवति तस्या सारस्वेन भारासहत्वात् इति चेन्नवर्द्धकिरत्नकृनत्वेन दिव्यशक्ते रचिन्त्यशक्तिकत्वात्, लोक उत्तरति, गुहा च तावन्तं कालमपावृतैवास्ते मण्डलान्यपि तथैव तिष्ठन्ति चक्रवविट्र जाव सुहसंकमे करेइ) भरत राजा की आज्ञा को स्वीकार करके उसने शीघ्र ही उम्मग्ना और निमग्ना नदी के ऊपर पूर्वोक्त अनेक सैकड़ों खम्भों आदि विशेषणों से युक्त दो पुल बना दिये ( करित्तो जेणेव भरहे राया तेणेव उवगच्छइ ) दो पुलों को बनाकर फिर वह जहां पर भरत राजा बिराजमान थे वहां पर माया (उवागच्छित्ता) वहां भाकर के (नाव एयमाणत्तियं पञ्चप्पिणइ) उसने पुलों के पूर्णरूप से निर्माण हो जाने की भरत राजा को खबर दे दी-यहां पर ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए कि उन्मग्ना नदी का तो स्वभाव ऐसा है कि जो भी पदार्थ उसमें गिर जाता है वह उसके ऊपर ही रहता है डूबता नहीं है तो फिर सेतु बनाने के लिये डाले गये पदार्थ उसमें कैसे नीचे पहुँच गये और कैसे वहां में स्थिर होकर जम गये। ये पुल वर्द्धकिरत्न ने बनाये होते हैं इसलिये उसकी शक्ति अचिन्त्य होने के कारण वे वहां पर सुस्थिर रहते हैं और इनके ऊपर से लोक उतरते रहते है. तथा चक्रवती के जीवन तक गुफा खुली हुई रही आती है. और उसमें वे सब मन्डल ज्यों के त्यो उतने ही काल तक बने रहते है. जब चक्रवर्ती दिवंगत हो जाता है करे) १२ नी भाशा स्वीशन त तरत ॥ भन भने निभाना नही ५२ गरे। स्तनावगेरेथा पूति विशेषथा युफ्त थे। म २मणीय सोमनाया. (करिता जेणेष भरहे राया तेणेव उवागच्छद) मे से मनावान ५0 rni भरत विद्यमान उता त्या माये। (उवागच्छित्ता) भावान (जाव पयमाणात्तियं पच्चप्पिणइ) तेथे ya। આજ્ઞા મુજબ જ તૈયાર થઈ ગયા છે, એવી ભરત રાજાને સૂચના આપી અહીં એવી આશંકા કરવી એગ્ય નથી કે ઉત્પના નદી તે સ્વભાવે જ એવી છે કે જે વસ્તુ તેમાં પડી જાય છે, તે તેની ઉપર જ રહે છે, ડૂબતી નથી. તે પછી પુલ બનાવવા માટે નાખવામાં આવેલી વસ્તુઓ તેમાં નીચે સુધી કેવી રીતે પહોંચી અને ત્યાં કેવી રીતે સ્થિર થઈને જામી ગઈ. એ પુલો વદ્ધકિરન બનાવે છે. એથી તેની શક્તિ અચિંત્ય હેવાથી તેઓ ત્યાં સુસ્થિર જ રહે છે અને તેમની ઉપર થઈને લોકે પાર ઉતરતા હે છે. તેમજ ચક્રવતીના જીવનકાળ સુધી ગુફા ખુલી જ રહે છે. તેમાં તે સર્વે મંડળો તેના જીવનકાળ સુધી યથાવત Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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