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________________ ७०६ जम्बूद्वीपप्रशप्तिसूत्रे एकवचनस्यौचित्येन यन्निवेदयाम इत्यत्र बहुवचनं तत्सपरिकरस्यापि आत्मनो निवेदकत्व ख्यापनार्थ तच्च बहूनामेकवाक्यत्वेन प्रत्योत्पादनार्थम् अथवा अस्मदो द्वयोश्चेति सूत्रेण एकत्वे द्वित्वे च विवक्षिते बहुवचनम् इति बोध्यम् ऐतत् , प्रियम् इष्ट-अभीष्टं भे भवतां भवतु ततो भरतः किं कृतवान् इत्याह-'तएणं' इत्यादि 'तएणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हतुट्ठ चित्तमाणं दिए जाव हिअए सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ' तत:-कपाटोद्घाटननिवेदनानन्तरं खलु स पटखंडाधिपति भरतो राजा सुषेणस्य सेनापतेः अन्तिके समीपे एतमर्थ कपाटोद्घाटननिवेदनानन्तरं खलु स भरतो राजा सुषेणस्य सेनापतेः अन्तिके समीपे एतमर्थ कपाटोद्घाटनारूपं श्रुत्वा निशम्य हृदये अवधार्य हृष्टतुष्टचित्तानन्दितः यावदहृदयः सुषेणं-तन्नामानं सेनापति सत्कारयति बहुमूल्य द्रव्यादिभिः सन्मानयति प्रियवचो भिः, सन्मानयति प्रियववोभिः 'सकारिता सम्माणित्ता' सत्कार्य सन्मान्य च 'कोडुंबियपुरिसे सदावेइ' कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति आहयति 'सदावित्ता एवं एमो” मैं जो बहुवचन का प्रयोग किया गया है वह समस्तपरिकर सहित सेनापति के निवेदन करने को प्रकट करने के लिए किया गयाहै अर्थात् सब परिवार मिलकर सेनापति के मुखसे यह शुभ संबाद का अपनेराजा भरत से निवेदन कर रहे हैं ऐसा जानना चाहिए अथवा-"अस्मदो द्वयोश्च" इस सूत्र से एकत्वअथवा द्वित्व विवक्षित होने पर भो बहुवचन प्रयुक्त होजाता है. इसके अनुसार यहां बहुवचन प्रयुक्त हुआ है। (तएणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावहस्स अंतिए एयमदूं सोचा निसम्म हट्ट तुट्ठ चित्तमाणदिए जाब हियए सुसेणं सेणावई सकारेइ' सम्मोणेइ) इसके बाद भहतराजाने सुषेण सेनापति से इस अपके अभीष्ट अर्थ संपादित होने की बात सुनी तो वह उसे सुनकर और उसे हृदय से निश्चिय कर हृष्ट तुष्ट चित्तानंदित हुआ यावत् उसका हृदय आनन्द से उछलने लगा और उसने उसी समय सुषेगसेनापति का बहुमूल्य द्रव्यादि प्रदान करके सत्कार किया और प्रियवचनों द्वारा उसका सन्मान किया. (सक्कारित्ता सम्माणित्ता कोटुंबियपुरिसे सद्दावेइ) सत्कार सन्मान करके फिर उसने कौटुम्बिक पुरुषों પરિકર સહિત સેનાપતિના નિવેદન કરવા માટે પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે એટલે કે સમસ્ત પરિકર મળીને સેનાપતિના મુખથી એ શુભ સંવાદ પોતાના રાજા ભરતને નિવેદન કરે છે આમ સમજવું જોઈએ અથવા અરમોદોઢ એ સૂત્રથી એકવ અથવા દ્વિવ વવક્ષિત હોવા છતાંએ બહુવચન પ્રયુક્ત થઈ જાય છે. એ મુજબ અહીં બહુ ચન પ્રયુક્ત થયેલ છે. (तपणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म हट्ट तुह चित्तमाणदिए जाव हियए सुसेण सेणावई सक्कारेइ सम्मानेइ) त्या२ मा १२ समये સુષેણ સેનાપતિના મુખથી રાભિષ્ટ અર્થ સંપાદિત થવા સંબંધી વાત સાંભળી અને તે પછી તે વાત હુદયમાં નિશ્ચિત કરીને તે રજા હg-તુષ્ટ ચિંતાનંદિત થયે યાવત્ તેનું હદય આનંદથી ઉછળવા લાગ્યું અને તેણે તેજ સમયે સુષેણ સેનાપતિને બહુમૂલ્ય દ્રવ્ય Allहान शने सा२ ४यो मने प्रियवयनाथी तेनु सन्मान यु. (सरकारिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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