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________________ प्रकाशिकाटोका तृ० वक्षस्कारः सू० १३ सुषेणसेनापतेविजयवर्णनम् प्रभुणा स्वामिना भरतेन सुषेणः सेनापतिः सत्कारित प्रचुरद्रव्यादिभिः, सम्मानितो बहुमानवचनादिभिः वस्त्रादिभिश्च अतएव सहर्षः प्राप्तप्रचुरसत्कारत्वात् विसृष्टः स्वस्थानगमनाय अनुज्ञातः सन् स-सेनापतिः स्वकं निजं पटमण्डपं-दिव्यपटकृतमण्डपं मध्यमपदलोपी समासः षटमण्डपोपलक्षितं प्रासादं वा सुषेणः सेनापतिः अतिगतः प्राविशत् 'तएणं सुसेणे सेणावईण्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते' ततः खलु स सुषेणः सेनापतिः स्नातः कृतबलिकर्मा-बायसादिभ्यो दत्तान्न भागः कृतकौतुक मङ्गलप्रायश्चित्तः सन् 'जिमिय भुत्तत्तरागए समाणे जाव' जिमितः भुक्तवान् राजविधिना, भुक्त्युत्तरं-भोजनोत्तरकाले आगतः सन् उपवेशनस्थाने, अत्र यावत् पदात् 'आयंते चोक्खे परमसुई भूए' इतिग्राह्यम् , आचान्तः शुद्धोदकेन कृतहस्तमुखशौचः चोक्षो लेपसिक्थाद्यपनयने, अतएव परमशुचीभूतः इदं च पदत्रयम् भुत्तुत्तरागए समाणे' इति पदात् पूर्व योज्यम् तथैव शिष्ट ननक्रमस्य दृश्यमानत्वात् पुन: सेनापतिः कीदृशोऽभूत इत्याहसरस गोसीस इत्यादि सरसगोसीस चंदणाणुक्खित्तगायसरीरे,सरस-गोशीर्षचन्दनोक्षितगा पटमंडप से उपलक्षित प्रासादमें-आगया (तएणं से सुमेणे सेणावई बहाए कयीलकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते) वहां आकर के उस सुषेण सेनापति ने स्नान किया बलिकर्म कियाकाक आदि कों के लिये अन्न का विभागकिया-कौतुक मंगल प्रायश्चित किया(जिमियभुतुतरागए समाणे) बाद में राजविधि के अनुसार भोजन किया भोजन करने के बाद फिर वह उपवेसन स्थान में आया-यहां यावत्पद से-"आयते, चोक्खे परमसूईभूए" इन पदों का ग्रहणहुआ है भोजन कर चुकने पर शुद्ध जल से हाथ मुंह धोना इसकानाम आचान्त है शरीर पर पड़े हुए खाने के सीत आदि को दूर करना-इसका नाम चोक्ष है इस प्रकार सब १कार से शरीर को हाथ-मुह आदि धोकर और उसपर पडे हुए भोजन के अंश को हटाकर बिल कुल साफ सुथरा बनालेना इसका नाम परमशुचो भूत होना है इस पदत्रय की योजना "भुत्तुत्तरागए समाणे" इस पद से पूर्व करनी चाहिये क्योंकि शिष्ट जनो में इसी प्रकार का क्रम देखा गया है । (सरसमोसीसंचदणाणुक्खित्तगायसरीरे) ५८५थी पक्षित प्रासामा भावी जया. (तएणं से सुसेणे सेणावई पहाए कयवलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते ) त्या मापाने ते सुखन सेनापतिथे स्नान यु. मतिम કર્યુ – કાક વગેરેને મ ટે અન્ન ભાગ અપત કરીને કૌતુક મંગળ અને પ્રાયશ્ચિત કર્યા (जिमिय भुत्तुत्तरागए समाणे) २०१६ २.विवि भु से न यु And ४शन पछी तपवेशन स्थानमा माये। मही यावत् ५६थी (आयंते चेक्खे परमसूई મુe ) એ પદેનું ગ્રહણ થયું છે. ભાજન કર્યા પછી શુદ્ધ પૂણીથી હાથ મો ધોવાં તે આચાન્ત કહેવાય છે. શરીર ઉપર પડેલા ભેજનના સીત વગેરે દૂર કરવા તે ચેક્ષ કહેવાય છે. આ પ્રમાણે સર્વરીતે હાથ મો વગેરે સ્વચ્છ કરીને અને શરીર ઉપર પડેલા ભેજનના કણેને હટાવીને શરીરને એકદમ સચછ બનાવી લેવું. તેનું નામ પરમ શુચીભૂત છે. એ પદત્રયની या (भुत्तुत्तरागप समाणे) पहानी पूर्व ४२वी मवेक्षित छ भ, शिष्ट साभां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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