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________________ प्रकाशिका टीका त. वक्षस्कारः सू० १३ सुषेण नापतेविजयवर्णनम् ___ ६७३ माणेन तत्र सकोरण्टानि कोरण्टनामककुसुमस्तवकयुक्तानि कुखुमपुष्पाणि हि पीतव र्णानि मालान्ते शोभार्थ दीयन्ते मालायै हितानि माल्यानि-पुष्पाणि तेषां दामानि माला: यत्र तत् तथा एवंविधेन छत्रेण आतपनिवारकेण ध्रियमाणेन शिरसि (विराजमान:) 'मंगलजयसद्दकयालोए' मङ्गलजयशब्दकृतालोकः, मङ्गलभूतः जयशब्दः कृत आलोके दर्शने सति यस्य स तथा एवंभूतः सुषणः 'मजणघरालो पडिणिक्खमइ' मज्जनगृहात् प्रतिनिष्क्रामति निःसरति 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निसृत्य 'जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ' यत्रैव बाह्या उपस्थानशाला सभाशाला यत्रैव आभिषेक्यम् अभिषेकयोग्यं हत्थिरयणं 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैवोपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढे' आभिषेक्यं हस्तिरत्नं दुरुढम् आरूढः 'तए णं से सुसेणे सेणावई हत्थिखंधवरगए' ततः खलु स सुषेण:-सुषेणनामक सेनापतिः हस्तिस्कन्धवरगतः प्राप्तः 'सकोरंटमल्लद मेणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं' सकोरण्टमाल्यदाम्ना छत्रेण ध्रियमाणेन सह 'विराजमानः' पुनः कीदृशः 'हयगयरहपवर जोह कलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे' हयगजरथप्रवरयोधकलितया अश्वहस्तिअनेक सेनापतियों से अनेक सार्थवाहों से और अनेक सन्धिपालों से युक्त हो गया था (सकोरंट मल्लदामेण छत्तणं धरिग्जमाणेणं) कोरंट पुष्पों के माला से युक्त ऊपर ताने गये छत्ते से यह सुशोभित हो रहा थो (मंगल जयसद्दकयालोए) इसके दिखते ही लोग मंगलकारी जय २ शब्द का उच्चारण करने लग जाते ऐसा यह सुषेण सेनापति रत्न (मज्जणघराओ पडिणिक्वमह) स्नानगृहसे बाहर निकला (पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठोणसाला जेणेव आभिसेक्के हस्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ) बाहर निकल कर यह उपस्थानशाला में आया वहां आकर फिर यह जहां आभिषेक्य हस्तिरत्न था वहां पर गया (उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयण दलढे) वहां जाकर यह आभिषेक्य हस्तिरत्न के ऊपर सवार हो गया-(तएणं से सुसेणे सेणावई हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेण हयगयरह पवर जोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे) इस के अनन्तर वह सुषेण सेनापति हाथी के स्कन्ध पर अच्छी तरह साथी, अन सापालथी भने भने सघिपामाथी युद्धत य गयो सता. (सकोरंट मल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेण) २२ पु०पनी भाणाथी युरत 6५२ तामां मावत सशतिथ होत. (मंगल जयसहकयालोए) मन नतional Heशय-य शहरयार १२वा वागता मेवा सुन सेनापतिल (मज्जणघराओ पडिणि खमइ) स्नान माथी महा२ नीयो. (पडिणिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव अभिसेक्के हस्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ) पा२ नीजाने से स्थानशाणामा भाव्या. भावान पछी से स्यां मानिध्य स्तिन हेतु त्या माव्यो. (उवागच्छित्ता आभिसेक्कं हत्थिरयण दुरूढे) त्यांगन से सानिध्य स्तिरत्न 6५२ सवार २४ गयो. (त पण से सुसेणे सेणावई हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेण हयगयरहपवरजोहकलियाए चाउरगिणीप सेणाए सद्धि संपरिडे) सेना पछी त सुषेय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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