SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 623
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कारः सू०७ मगधतीर्थाधिपतेः भरतं प्रत्युपस्थानोयार्पणम् ६०९ समूहस्तेन परिक्षिप्तं सर्वतो व्याप्तं यत्तत्तथा 'सब्बोउयसुरभिकुसुम आसत्तमल्लदामे' सर्वर्तुक सुरभिकुसुमासक्तमाल्यदामम्, सर्वेषाम् ऋतूनां सम्बन्धीनि यानि सुरभि कुसुमानि-सुगन्धिपुष्पाणि तैः आसक्ताः-युक्ता माल्यदामानः पुष्पमाला यत्र तत्तथा 'अंतलिक्खपडिवण्णे' भन्तरिक्षप्रतिपन्नम्-गगनतलगतम् 'जक्खसहस्स संपरिवुडे' यक्षसहस्रसंपरिवृतम् यक्षेत व्यन्तरदेवनिकायः, 'दिव्चतुडियसदसण्णिणादेणं पूरेते चेव अंबरतलं' दिव्यत्रुटितशब्दसन्निनादेन पूरयदिव अम्बरतलम्, तत्र दिव्यानाम् त्रुटितानों तुर्यवाविशेषाणां यः शब्दः ध्वनि यश्च सङ्गतो निनादः प्रतिध्वनिः तेन अम्बरतलं पूरयदिव 'णामेणय सुदंसणे' नाम्ना च सुदर्शनम् 'णरवइस्स पढमे चक्करयणे' नरपतेः चक्रिणो भरतस्य प्रथमम् आद्यं प्रधानं च सर्वरत्नेषु वैरिविजये सर्वत्रामोघशक्तिकत्वात् चक्ररत्नम् 'मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहियाए महामहिमाए णिव्यताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ' मागधतीर्थकुमारस्य देवस्य विजयोपलक्षे अष्टाहिकायां महामहिमायां निवृत्तायां सत्याम् आयुधगृहशालातः प्रतिनिष्कामति निर्गच्छति 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य 'दाहिणपच्चत्थिमं दिसिं वरदामतित्थाभिमुहे पयाए याचि होत्था' दक्षिणपाश्चात्यां-दक्षिणपश्चिमां दिशम् नैऋत्यकोणमाश्रित्य वरदामतीर्थाभिमुखं प्रयातं-चलितं चाप्यभवत् ॥९० ७॥ कुसुम आसत्त मल उदामे अंतलिक्खपडिवन्ने, जक्ख सहस्सपरिवुडे) समस्त ऋतुओं के सुरमित कुसुमों को निर्मित मालामों से यह सुशोभित था, आकाश में ठहरा हुआ था हजार यक्षों से यह परिवृत था (दिव्य तुडिय पद्द पणिणाएणं पूरते चेव अंबरतलं णामेणं सुदंसणे णरवहस्स पढ मे चक्करयणे) दिव्य तय वाद्यविशेषों के शब्द से एवं उनकी संगत ध्वनियों से अम्बर तल को भर सा रहा था, नाम इसका सुदर्शन था ऐसा यह भरत चक्रवर्ती का-प्रथम-आध, तथा सर्वरत्नों में श्रेष्ठ वैरिजनों के विनय करने में सर्वत्र अमोघ शक्ति वाला होने से प्रधान चक्ररत्न था ऐसा यह चक्ररत्न (मागहतित्थकुमारस्त देवस्स अट्ठाहिआए महामहिमाए णिवत्ताए समाणीए आउहघर सालाओ पडिणिक्खमइ) जब मागधतीर्थ कुमार को भात चक्रवर्ती ने अपने वश में करलिया तब उसके उपलक्ष में किये आठदिन के महामहोत्सव के निष्पन्न हो जाने पर आयुधशाला गृह जक्खसहस्सपरिवुडे) सर्व ऋतुमाना सुरमित भुमान भागामाया में सुशामितहत से माशां मस्थित तु सहर रक्षाथी थे वृत्त तु. (दिब्वतुडियसद्दस. ण्णिणापणं परेंते चेव अबरतलं णामेणं सुदंसणे गरवइस्स पढमे चक्करयणे) हिच्यतय વાઘ વિશેને શબ્દથી તેમજ તેમની સંગત કવનિઓથી તે બરતલને પૂરિત કરતું હતું. એવું એ ભરત ચક્રવતીનું પ્રથમ–આઘ તેમજ સર્વરત્નોમાં શ્રેષ્ઠ, વરિઓ ઉપર વિજય મેળવવામાં સર્વત્ર અમોઘ શક્તિ ધરાવનાર હોવાથી એ પ્રાન ચક્રરત્ન હતું એવું આ ચક્રરત્ન कमासदेवम्स अदाहिआए महामहिमाए णिवत्ताप समाणीप आउघरसालाओ पडिणिक्खमइ) यारे वतीय उभारने सरत २४ता पाताना शमां शसीधा. ત્યાર બાદ તે આ નંદના ઉપલક્ષ્યમાં આઠ દિવસને મહામહોત્સવ સમ્પન કરવામાં આવ્યું Risuaa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy