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________________ ५६० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे असोगपुण्णाग चूयमंजरीणवमालिअबकुलतिलगकणवीरकुंद कोज्जयकोरंटयपत्तदमणयवरसुरहिसुगंधगंधिअस्स) पाटलमल्लिकचम्पकाशोकपुन्नागाम्रमजरीनवमालिका बकुलतिलककणवीरकुन्दकुब्जककोरण्टकपत्रदमनकवरसुरभिसुगन्धगन्धितस्य इत्यादि षष्ठयन्तपदानां (पुष्पनिकरस्य) इत्यग्रेण सम्बन्धः, तत्र पाटलं-पाटलपुष्पम् मल्लिका-विचकिलपुष्पम् (वेली) इति भाषायां प्रसिद्धम्, चम्पकाशोकपुन्नागाः प्रसिद्धाः आम्रमञ्जरी बकुलः केसरः तिलको यः स्त्रीकटाक्षनिरीक्षितो विकसति तत्पुष्पम्, कणवीरकुन्दे प्रसिद्ध कुब्जकं कूब इति नाम्ना वृक्षविशेषस्तत्पुष्पम्, कोरण्टकं-तन्नामक पुष्पविशेषः पत्राणि मरुबक पत्रादीनि दमनकः स्पष्टः एतैर्वरसुरभिः-अत्यन्त सुरभिः तथा सुगन्धाः शोभनचूर्णास्तेषां गन्धो यत्र स तथा तस्य (कयग्गहगहियकरयलपन्भट्ठविप्पमुक्कस्स) कचग्रहग्रहीतकरतलप्रभ्रष्टविप्रमुक्तस्य युवत्याः पञ्चाङ्गुलिभिः केशेषु ग्रहणं कचग्रहः तन्न्यायेन गृहीतस्तथातदनन्तरं करतलाद्विप्रमुक्तः सन् प्रभ्रष्टः (पतितः) तस्य (दसद्धवण्णस्स) दशार्द्धवर्णस्य पश्चवर्णस्य (कुसुमणिगरस्स) कुसुमनिकरस्य पुष्पपुञ्जस्य (तत्थ चित्तं जाणुस्सेहप्पमाणमित्तं ओहिनिकरं करेत्ता) तत्र चित्रं जानत्सेधप्रमाणमात्रम् अवबकुलतिलग करणवीरकुंद कोज्जय कोरंटय पत्तदमणयवरसुरहि :सुगन्धगन्धिअस्स क्यग्गहगहियकरयल पब्भट्ठविप्पमुकास्स दसद्धवण्णस्स - पुप्फणिगरस्स) हर एक मंगल द्रव्य के चित्र के भितर बनाये गये प्रत्येक वर्ण पर उसने पाटल पुष्पों को गुलाब के फूलों को चढ़ाया। मल्लिका मोघरा - के पुष्पों को चढाया, चम्पक वृक्ष के पुष्पों को चढाया , अशोक वृक्ष के पुष्पों को चढाया. पुनाग वृक्ष के पुष्पो को चढाया, आम्र वृक्ष की मंजरी चढायी, नवमल्लिका. बकुल. तिलक, कणवीर-कनेर-कुन्द-कुजक, कोरंट, मरुबा, और दमनक इन सबके पुष्पों को चढाया । ये सब पुष्प अपनी सुगंधित गंध से महक रहे थे-अर्थात् ताजे थे-कुम्हलाये हुए नहीं थे । जिस प्रकार सदय होकर युवा पुरुष अपनी तरुण भार्या के राति काल में बहुत धिमे से हाथ द्वारा केशग्रह करलिया करता है और बाद में उसे छोड़ देता है । उसी प्रकार से चढ़ाते समय भरत राजा ने उन पुष्पो को पांचो अंगुलियो से पकड़ कर के उन लिखित वर्णादि के ऊपर मंगलए) स्वस्ति१, श्रीवत्स 3, न-धावत्त' 3, पद्धमान ४, मद्रासन ५, मत्स्य, ६, ४१ ७ अन ४५८, 48 भर द्रव्याने (आलिहिता) मीन (काऊणं करेइ) उवयारंति) तमस तमनी ५१२ मा पनि समान २॥ प्रमाणे तेमन। ५या२ या (किं ते) २५३ (पाडलमल्लिअ चंपगअसोक पुण्णागचूअमंजरिणवमालिचबकुलतिलगकण वीरकुदकोज्जयकोरंटयपत्तदमणयवए सुरहिसुगंधगंधिभस्स कयगगहगहिअकरयलपन्भट्टधिप्प मुक्कस्स दसद्धवप्णस्स पुप्फणिगरस्स) हरे४ ४२४ भ द्र०यना यिनी २०४२ नावामा આવેલા દરેક દરક વણું ઉપર તેણે પાટલ પુષ્પ ચઢાવ્યાં, મલ્લિકા-મોગરાના પુપિો ચઢાવ્યાં ચમ્પક વૃક્ષના પુષ્પ ચઢાવ્યાં, અશક વૃક્ષના પુષ્પ ચઢાવ્યાં, પુન્નાગ વૃક્ષના પુષ્પ ચઢાવ્યાં આમ્રવૃક્ષની મંજરીએ ચઢાવી, નવલિકા, બકુલ, તિલક, કણવીર કનેર, કુન્દ, કુજક, કરંટ, મરુઆ અને દમનક એ સર્વના પુષ્પ ચઢાવ્યાં. એ સર્વે પુપે તાજા હતાં, મ્યાન Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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