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________________ प्रकाशिका टीका ४० वक्षस्कारः ३ भरतराज्ञः दिग्विवियादिनिरूपणम् _____ ५३७ दकादिभिरीषत्सित्ता, संमार्जिता संमार्जनैः परिस्कृता अतएव शुचिका संमृष्टा रथ्या राजमार्गोऽन्तरवीथी च अवान्तरभागो यस्यां सा तथा ताम् 'मंचाइमंचकलियं' तत्र मश्चातिमञ्चकालिताम् मञ्चा:-मालकाः दर्शकजनोपवेशनार्थम् अतिमञ्चाः तेषामप्युपरि ये तैः कलिता युक्ता ताम् 'णाणाविह रागवसण ऊसिअझयपडागाइपडागमंडियं' तत्र नानाविधो रागो-रजनं येषु तानि वसनानि वस्त्राणि येषु तादृशा ये उच्छ्रिता उर्वीकृता ध्वजाः-सिंहगरुडादिरूपकोपलक्षिता बृहत्पट्टरूपाः पताकाश्च तदितररूपाः, अतिपताकाः तदुपरि वर्तिन्यः पताकास्ताभिर्मण्डिताम् 'लाउल्लोइयमहियं' तत्र लापितोल्लोचितम हितां यद्वा लिप्तोल्लोचितमहिताम्, तत्र लापितं छगणादिना लेपनम्, उल्लोचितं सेटिकादिना कुड्यादिषु धवलनं ताभ्यां महितमिव महितं शोभितं प्रासादोदि यस्यां सा तथा ताम्, यद्वा लिप्तं छगणादिना, उल्लोचितम् उल्लोच युक्तं प्रासादादि यस्यां सा तथा ताम् 'गोसीससरसरत्तचंदणकलसं' गोशीर्षसरसरक्तचन्दनकलशां तत्र गोशीर्षैः सरसरक्तचन्दनैश्च युक्ताः शोभाथ कलशाः यस्यां ताम् 'चंदणघडसुकय जाव गंधुधुयाभिरामं चन्दनघटसुकृत यावद्गन्धोधृताभिरामाम् अत्र यावत्पदेन 'चंदण घड मुँह करके अच्छी तरह से वैठ गया (तएणं से भरहे राया कोडंबियपुरिसे सद्दावेइ) बादमें उस भरत राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सहावित्ता एवं वयासी) और बुलाकर उनसे उसने ऐसा कहा – (विप्पामेव भो देवाणुप्पिया विणीअं रायहाणि सभितरबाहिरिझं आसिय संमज्जियसित्तसुइगरत्थंतरवीहियं मंचाइमंचकलिअं) हे - देवानुप्रियो ! आपलोग बहुत ही जल्दी विनीता राजधानी को भीतर और बाहर से बिलकुल साफ सुथरी करो सुगंधित पानी से उसे सिञ्चित करो, बुहारी से कूडा कचरा निकाल कर उसकी सफाइ करो की जिससे राजमार्ग और अवान्तर मार्ग अच्छी तरह साफ सुथरे हो जावें दर्शकजनों के बैठने के लिये मंचों के ऊपर मंचो को सुसज्जित करो (णाणाविहरागवसणऊसिम झयपडागाइपडागमंडियं) अनेक प्रकार के रंगों से रंगे हुए वस्त्रों की ध्वजाओं से पताकाओं से-कि जिनमें सिंह गरुड आदि के चिह्न बने हों तथा अतिपताकाओं से-इन पताकाओं के उपर फहरातो हुइ बड़ी२ लम्बी पताकाओं से-उसे मण्डित करो (लाउल्लोइयमहियं ) जिनकी नोचेकी जमीन गोबर आदि से लिपी हो और चूने की कलई से जिनकी दीवार पुती हों ऐसे प्रासादादिको वाली उसे बनाओ (गोसीससरसरत्तचंदणकलसं) शोभा के निमित्त हर एक दरवाजे पर ऐसे कलशों को रखो कि जो गोशीर्षचन्दन से और रक्तचंदन से उपलिप्त हो (चंदनघडसुकय जाव गंधुद्ध्याभिरामं) अने सपा माटे भयानी 6५२ भयो। सुस ४२१. (णाणाविहरागवसणऊसिअझय पडागाइ पडागमंडियं) अने तन माथी गाया पत्रानी माथी-पतासाथी કે જેની અંદર સિંહ, ગરુડ વગેરેના ચિહ્નો હોય તેમજ અતિ પતાકાઓથી-એ પતાકાઓની ઉપર ફરકતી બહુજ મૉટી-મેટી લાંબી પતાકાઓથી-વિનીતા નગરીને મંડિત કરો (ला उल्लोइय महिय) रेमनीनीयानी भूमि छ। गेरेथा विस्त डाय अने यूनानी थी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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