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________________ ५२० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 啮 यते इति सच कीदृश इत्याह- 'जसंसी उत्तमे अभिजाए. यशस्वी कीर्त्तिमान् उत्तमः शलाका पुरुषत्वात् अभिजातः कुलीनः श्री ऋषभादिवंश्यत्वात् 'सत्तवीरिय परक्कमगुणे, सत्त्वं- साहसं वीर्यम्-आन्तरं बलम, परक्रमः शात्रुवित्रासनशक्तिः ऐते गुणा यस्य सत्त्ववीर्यपराक्रमगुणः एतेन राज्योचितसर्वातिशायि गुणवत्वमुक्तम् पसत्थवण्णसरसारसंघयण तनुगबुद्धिधारण मेहासंठाण सीलप्पई' प्रशस्तवर्ण स्वरसार संहनन तनुकबु द्विधारणमेधा संस्थान शील प्रकृतिकः, तत्रः प्रशस्ताः - तत्कालवर्त्ति जनापेक्षया श्लाघनीयाः वर्णः देहकान्तिः, स्वरो ध्वनिः सारः शुभपुद्गलोपचयजभ्यो धातुविशेषः, संहननम् अस्थिनिचयरूपम् तनुकं शरीरम् धारणा अनुभूतार्थधारणाशक्ति: मेधा हेयोपादेयधीः, संस्थानं यथास्थानमङ्गोपाङ्गविन्यासः शीलम् आचारः प्रकृतिस्वभावः, एतेषां द्वन्द्वोत्तरं प्रशस्ता वर्णादयोऽर्थाः यस्य स तथेति बहुव्रीहि: 'पहाणगावच्छायागईए, किया जावे तो फिर इस काल में मनुष्यों में असंख्याता पुष्कत्व का व्यवहार प्रसङ्ग प्राप्त होता है. अतः काल में असंख्येयता असंख्यात वर्षों की अपेक्षा से ही मानना चाहिये इस तरह जब असंख्यात वर्षों तक असंख्यात काल व्यतीत हो चुके तब एक भरत चक्रवर्ती के बाद दूसरा भरत चक्रवर्ती कि जिससे भरत क्षेत्र का भरत ऐसा नाम प्रचलित होता है उत्पन्न होता है यह भरत चक्रवर्ती (नसंसी उत्तमे अभिजाए) यशस्वी कीर्ति संपन्न होता है, उत्तम शलाका पुरुष होने से श्रेष्ठ होता है तथा अभिजात - कुलीन होता है क्यों कि यह ऋषभादि का वंशज होता है ( सत्तवीरियपरक्कम गुणे ) इसमें सत्त्व साहस वीर्य आन्तर बल, पराक्रमशत्रु विनाशन शक्ति ये सब गुण होते हैं. इस पद द्वारा उसमें राजन्य के उचित सर्वाति शायी गुणवत्ता प्रगट की गई है. (पसत्थ वण्ण सर सार संघयण तनुगबुद्धिधारण मेहा संठाण सोलप्पई) अन्य राजाओं की अपेक्षा इसका वर्ण देहकान्ति, स्वर ध्वनि, सार शुभपुद्गलोपचय जन्य धातुविशेष, संहनन अस्थिनिचय तनु शरर धारणा अनुभूत अर्थ की धारणा शक्ति ખ્યાતતાને વ્યવહાર થયે નથી. જો સમયની અપેક્ષાએ કાળમાં અસ ખ્યાતતાના વ્યવહાર કલ્પિત કરવામાં આવે તે પછી એ કાળમાં મનુષ્યેમાં અસંખ્યાતાયુકતના વ્યવહાર પ્રસંગ પ્રાપ્ત થાય છે. એથી કાળમાં અસ ધ્યેયતા અસંખ્યાત વષેની અપેક્ષાથી જ માનવી જોઈએ આ રીતે જ્યારે અસંખ્યાત વર્ષો સુધી અસ`ખ્યાત વો વ્યતીત થઈ ચૂકયાં ત્યારે એક ભરત ચક્રવતી પછી બીજો ભરત ચક્રવતી -કે જેમનાથી ભરતક્ષેત્રનું નામ ભરત આ પ્રમાણે પ્રખ્યાત थाय छे - उत्पन्न थाय छे से भरत यवर्ती (जसंसी उत्तमें अभिजाप ) - यशस्वी - श्री त સપન્ન હાય છે, ઉત્તમ શલાકા પુરુષ હેાવાથી-શ્રેષ્ઠ હાય છે તેમજ અભિજાત કુલીન હોય छे. डेभड़े थे ऋषलाहि वंश होय छे. ( सत्तवरिय परक्कमगुणे) मां सत्त्व- साहुस વીય—ાંતર ખળ, પરાક્રમ-શત્રુ વિનાશન શક્તિ એ સર્વે ગુણુ હાય છે, એ પદ વડે તેમાં रामन्यना उचित सर्वात शायी गुणवत्ता प्रवामां भावी छे. (पसत्थ वण्ण सरसार संघयण तनुग बुद्धिधारण मेंहा संठाण सोलप्पई) अन्य रामयोनी अपेक्षा सेनेो वायुદેહ કાંતિ, સ્વર-વનિ, સાર શુભ પુદ્ગલેાપચય જન્ય ધાતુ વિશેષ, સંહનન—એસ્થિનિચય Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org/
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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