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________________ ५०२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे धनूंषि उर्ध्वमुच्चत्वेन भविष्यन्ति, तथा (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुन्चकोडी) जघन्ये नान्तर्मुहूर्त्तम् उत्कर्षेण पूर्वकोटिम् (आउयं) आयुष्कं ( पालेहिंति) पालयिष्यन्ति (पालित्ता) पालयित्वा (अप्पेगइया णिरयगामी जाव अंत करेहिति) अध्येकके निरयगामिनो यावत् अन्तं करिष्यन्ति यावत्पदसंग्राह्यपाठमनुसृत्यैवमर्थो बोध्यस्तथाहि - केचिद् मनुष्या नरकगामिनो भविष्यन्ति केचित् तिर्यग्गामिनो भविष्यन्ति केचिन्मनुष्यगा - मिनः केचिच्च देवगामिनो भविष्यन्ति केचिच्च सिद्धिगतिगामिनो भविष्यन्तीति । तस्यां समायां ये मनुष्यवंशाः प्रचलिष्यन्ति तानाह - ( ती सेणं समाए ) तस्यां खलु समायां (तओ वंसाः) त्रयो वंशाः (समुप्पज्जिस्संति) समुत्पत्स्यन्ते समुत्पन्ना भविष्यन्ति (तं जहा ) तद्यथा - (तित्थगरवंसे) तीर्थकर वंशः तीर्थङ्करसन्तानपरम्परा (चक्कवट्टिवसे) चक्रवर्तिवंशः चक्रवर्त्तिसन्ततिपरम्परा, (दसारखं से) दशार्हवंशः यदुवंशश्चेति । तस्यां समायां कियत्कियत्संख्यकाञ्चक्रवर्त्त्यादयः समुत्पत्स्यन्ते ? इत्याह- (तीसेणं भंते ! समाए) तस्यां ऊँचाई अनेक धनुष प्रमाण होगो ( जहण्गेणं अतो मुहुत्तं उक्कोसेणं पुत्र्वकोडी आउयं पाछेहिंति) इनकी आयु जघन्य से एक अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट से एक पूर्वकोटि तक की होगी (पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, जाव अंतं करेहिंति) इतनी लम्बी आयु का भोग करके जब ये मरेंगे तो इनमें से कितनेक मनुष्य तो नरक में जायेंगे और कितनेक मनुष्य यावत् समस्त शारीरिक और मानसिक दुःखो का विनाश करेंगे यहाँ यावत्पद से संग्राह्य पाठ इस प्रकार से हैं- " केचित् मनुष्याः नरक गामिनो भविष्यन्ति केचित् तिर्यग्गामिनो भविष्यन्ति केचित् मनुष्यगामिनो भविष्यन्ति केचित् देवगामिनो भविष्यन्ति केचित् सिद्धगतिगामिनो भविष्यन्ति” इस यावत्पद गृहीत पाठ का अर्थ स्पष्ट है. (तीसेणं समाए तओ बंता समुप्यज्जिस्संति) उस उत्सर्पिणी काल के इस तृतीय आरक में तीन वंश उत्पन्न होगे - ( तं जहा ) जो इस प्रकार से हैं - ( तित्थगरवसे, चक्कवट्टिवसे) एक तीर्थकर वंश, द्वितोय चक्रवर्ती वंश तृतीय दशार्ह वंश - यदुवंश (तीसे णं समाए थशे तेम ४ खेमना शरीरनी अयाई भनेउ धनुष प्रमाण भेटली डशे. (जहण्णेण अतोमुहुत्त उक्कोसेणं पुब्वकोडी आउयं पालेहिति) खेभनु आयुष्य धन्यथी ये मन्तर्भुत भेट भने उत्कृष्टथी से पूर्व अटि सुधी डशे. (पलित्ता अप्पेगइया णिरयग्रामी, जाब अंत करेहिति) मासु हीर्घ आयुष्य लोगवीने न्यारे येथे भर पामशे त्यारे खेभनाમાંથી કેટલાંક મનુષ્યે તે નરકમાં જશે અને કેટલાક અનુષ્યે। યાવતુ સમસ્ત શારીરિક અને માનસિક દુ:ખાનેા વિનાશ કરશે. અહી' યાવત્ પદથી સંગ્રાહ્ય પાઠ આ પ્રમાણે છે"केचित् मनुष्याः नरकगामिनो भविष्यन्ति केचित् तिर्यगामिनो भविष्यन्ति केचित् मनुष्यगामिनो भविष्यन्ति केचित् देवगामिनो भविष्यन्ति केचित् सिद्धगतिगामिनो भविष्यन्ति' यावत् पहथी गृहीत मे पाहतो अर्थ स्पष्ट ४ . ( तोसेणं समाए तओ वसा समुपज्जस्संति) ते उत्सर्पिणी अजना से तृतीय आरम्भ वंशी उत्पन्न थशे ( तं जहा ते या प्रमाणे छे. (तित्थगरवंसे, चक्कलट्टि वैसे, दसारवंसे) मे तीर्थ ४२ वंश, द्वितीय यत्रतवंश ने तृतीय हशा वंश यहुवंश (तीसेणं समाप तेबीसं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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