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________________ NAVNAVM प्रकाशिका टीका द्वि० वक्षस्कारः सू० ५९ दुष्षमसुषमासमा निरूपणम् ५०१ (पडिवज्जिस्सइ) प्रतिपत्स्यते समापन्नो भविष्यति । (तीसेणं भंते ! समाए) तस्यां खलु भदन्त ! समायां (भरहस्स वासस्स) भरतस्य वर्षस्य (केरिसए) कीदृशकः (आया. रभावपडोयारे) आकारभावप्रत्यवतारो ( भविस्तइ ) भविष्यति ? इति गौतम प्रश्नेभगवानाह-'गोयमा ! गौतम ! ( बहुसमरमणिज्जे जाव अकित्तिमे हिं चेव) बहुसमरमणीयो यावत् अकृत्रिमैश्चैव । अत्र यावत्पदेन (भूमिभागे भविस्सइ) इत्यरभ्य (कित्तिमेहिं चेव) इत्यन्त ! पाठः संग्राहयः । पुनगौतमस्वामी पृच्छति तेसिणं भंते ! मणुयाणं) तेषां खलु भदन्त ! मनुजानां हे भदन्त ! तेषामुत्सर्पिणीदुष्षम सुषमाकालभाविनां मनुष्याणां (केरिसए आयारभावपडोयारे) कीदृशक आकारभाव प्रत्यवतारो ( भविस्सइ) भविष्यति ? । भगवानाह- (गोयमा ! ) गौतम (तेसि णं मणुयाणं) तेषां खलु मनुजानां ( छबिहे संघयणे) षड्विधं संहननं ( छविहे संठाणे पविधं संस्थानं च भविष्यति, तथा-ते मनुजाः (बहूई धण्इं उद्धं उच्चत्तेणं) बहूनि वृद्धिं गत होता हुआ इस भरत क्षेत्र में दुष्पमसुषमा नाम का तृतीय काल प्राप्त हो जावेगा (तीसेणं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) गौतमने प्रभु से ऐसा पूछा है कि हे भदन्त ! जब यह काल भरतक्षेत्र में अवतीर्ण हो जावेगा तो भरतक्षेत्र का आकार भाव का प्रत्यवतार स्वरूप कैसा होगा? इस प्रश्न के उत्तरे में प्रभु ने कहा है हे गौतम! इस आरे में भरतक्षेत्र का भूमिभाग बहु सम रमणीय होगा यावत् अकृत्रिम पंचवर्णों के मणियों से वह उपशोभित होगा. यहां यावत्पद से "भूमिभागे भविस्सइ" यहां से लेकर "कित्तिमेहि चेव" तक का पाठ गृहीत हुआ है. अब गोतमस्वामो पुनः प्रभु से ऐसा पूछते हैं- ( तेसिणं भंते ! मणुयाणं केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) हे भदन्त ! इस काल के मनुष्यों का स्वरूप कैसा होगा ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- (गोयमा ! तेसिणं मणुयाणं छविहे संघयणे छबिहे संठाणे बहुइं धणूई उड्ढं उच्चत्तेण) हे गौतम ! उत्सर्पिणो के दुष्षमासुषमा कालभावी मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन होंगे छह प्रकार के संस्थान होंगे-तथा इनके शरीर की समानामतीय प्राप्त थशे. (तोसे णं भंते ! समाए भरहस्स बास्सस केरिसर आयारभावपडोयारे भविस्सइ) गौतमे प्रभुने माप्रमाणे ५२४ मत ! यार से आग ભરતક્ષેત્રમાં અવતીર્ણ થઈ જશે ત્યારે ભરતક્ષેત્રના આકાર–ભાવને પ્રત્યવતાર એટલે કે વરૂપ કેવું હશે ? આ જાતના પ્રશ્નના જવાબમાં પ્રભુ કહે છે–હે ગૌતમ ! એ આરામાં ભરતક્ષેત્રને ભૂમિભાગ બહુ સમરમણીય થશે. યાવત્ અકૃત્રિમ પાંચવર્ણોના મણિઓથી તે मित यश सही यावत् ५४था (भूमिभागे भविस्सइ) महीधी भांडीने (कित्तिमें हि चेव) सुधीना ५ गडीत थये। छे. वे गौतम स्वामी पुन: प्रभु २ मोजतना प्रश्न ४२ छ-तेसीणं भले ! मणुयाण केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ) महन्त ! 241 आणना भनव्यानु३५ बुशे ? नाममा प्रभु ४९ छे-(गोयमा ! तेसि णं मणुयाणं छविहे संघयणे छबिहे सठाणे बहुई धणूई उड्द उच्चत्तेणं) 3 गौतम उत्सपिना દુષમા સુષમા કાળના ભાવી મનુષ્યના ૬ પ્રકારના સહનનો થશે, ૬ પ્રકારના સંસ્થાને Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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