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________________ ४८० जम्बूद्वीपप्राप्तिसूत्रे समये परिसमाप्तेः श्रावणमासस्य कृष्णप्रतिपत्तिथौ (बालवकरणं सि) बालवकरणे-बालव नामके करणे (अभीइनक्खत्ते) अभिजिन्नक्षत्रे चन्द्रेण साद्धं योगमुपागते सति. (चोइसपढमसमये)चतुर्दश प्रथम समये चतुर्दशानां कालविशेषाणां यःप्रथम: समय उच्छवासो निःश्वासो वा तस्मिन्-चतुर्दशकालविशेषाणां प्रारम्भक्षणे, चतुर्दशकालविशेषास्तु निःश्वासादुच्छ्वासात् वा गणनीयाः, तथाहि नि:श्वास उच्छ्वासोवा १, प्राणः २, स्तोकः ३, लवः ४, मुहूर्तम् ५, अहोरात्रः ६, पक्षः ७, मासः ८, ऋतुः ९, अयनम् १०, संवत्सरः ११, युगं १२, करणं १३, नक्षत्रम् १४ इति । समयस्य निर्विभागत्वेनाद्यन्तव्यवहाराभावादावलिकायाश्चाव्यवहार्यत्वादत्र समयपदेन निःश्वासोच्छ्वासयोरेकतरग्रहणम् । अत्रेदं बोध्यम् तिथि में पूर्व अवसर्पिणीकाल के आषाढ मास की पूर्णिमा रूप अन्तिम समय की परिसमाप्ति होने पर (बालवकरणंसि अभिइणक्वत्ते) बालव नामके करणमें चन्द्र के साथ आभजित् नक्षत्रका योग होनेपर (चोदसपढमसमये) चौदह कालों का जो उच्छ्वास या निःश्वास रूप प्रथम समय है उस समय (अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुणपरिवड्ढोए परिवड्ढमाणे २ एत्थणं दूसम दूसमा णामं समा पडिवज्निस्सइ)अनन्त वर्ण पर्यायों से यावत्- अनन्त गन्ध पर्यायो से, रस पर्यायों से अनन्त स्पर्श पर्यायों से, संहनन पर्यायों से अनन्त संस्थान पर्यायों से अनन्त उच्चत्व पर्यायों से अनन्त आयुष्क पर्यायों से अनन्त गुरुलघुपर्यायों से अनन्त उत्थान, कर्म, वल वीर्य, पुरुषकार पर्यायों से अनन्त गुण वृद्धि वाला होता हुआ दुष्षमदुष्षमा नाम का काल प्रारम्भ होगा. चौदह प्रकार के काल इस प्रकार से हैं निःश्वास अथवा उच्छवास १ प्राण २ स्तोक ३ लव ४ मुहूर्त २, अहोरात्र ६ पक्ष ७मास ८ ऋतु ९, अयन १०, संवत्सर ११ युग १२ करण १३, और नक्षत्र १४ समय काल का निर्विभाग अंश है-इसलिये इसमें आदि अन्त का व्यवहार नहीं होता है तथा आवलिका रूप काल में अव्यवहार्यता है इसलिये पडिवए) श्रावण मासनी पक्षनी प्रतिपहा तिथिमा पूर्व अपसपी आना अषाढ भासनी लिमा तिथि ३५ मतिम समयनी समाप्ति २६ शे (बालवकरण सि अभिइणक्खत्ते) मा नामना ४२मा यन्द्रनी साथै भनित नक्षत्रनो योथरी त्यारे (चोइसपढमसमये) यतु । गोन। २२वास निवास ३५ प्रथम समय छत समये (अणंतेहि वण्णपज्जवेहि, जाव अणंत गुणपरिवुइढीए परिबडूढमाणे २ एत्थणं दूसमदूसमाणामं समा पडिवज्जिसइ) मन त पर्यायाथी, यावत सनत - पयायोथी, मन तरस પર્યાથી અનંત પશે પર્યાથી, અનંત સંડનન પર્યાથી, અનંત સંસ્થાન પર્યાથી, અનત ઉચ્ચત્વ પર્યાચોથી, અનંત આયુષ્ક પર્યાથી અનંત અગુરુલઘુ પર્યાયથી, અનંત ઉત્થાન, કર્મ, બળવીર્ય પુરૂષકાર પર્યાથી, અનંત ગુણ વૃદ્ધિયુક્ત થતો આ દુષમ દુષમા નામને કાળ પ્રારંભ થશે. ચતુર્દશ પ્રકારના કાળે આ પ્રમાણે છે નિઃશ્વાસ અથવા श्वास (१) प्राय (२) स्। (3) a५ (४), मुत्त (५), अडा२।३ (९), ५२ (७), मास (८) *तु (e) अयन (१०), सबस२ (११) युग (१२) ४२६ (13) सने नक्षत्र (१४) समय બને નિર્વિભાગ અ શ છે. એથી એમાં આદિ અંતને વ્યવહાર થતો નથી તથા આ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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