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________________ प्रकाशिका टोका द्वि. वक्षस्कार सू. ४९ भगवदादि कलेवरस्नपनादिकनिरूपणम् शीघ्रमेव 'भो देवाणुपिया !' भो देवानुप्रियाः । यूयं 'खीरोदगसमुद्दाओ' क्षीरोदक समुद्रात् ' खीरोदकं' क्षीरोदकं 'सहरह' समाहरत = समानयत 'तए णं से आभिओगा देवा' ततः खलु ते आभियोग्या देवाः क्षीरोदकसमुद्रात् 'खोरोदगं' क्षीरोदकं' साहरंति' समाहरन्ति - समानयन्ति इति ।। सू० ४८ ॥ मूलम् - तए णं से सक्के देविंदे देवराया तित्थगरसरीरंगं खीरोदगेणं पहाणेs हाणित्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिपइ. - अणुर्लिपित्ता हंस लक्खणं पडसाडयं नियंसेइ नियंसित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेs, तणं से भवणवइ जोव वेमाणिया गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाईपि खीरागेणं होवेति पहावित्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिंपति अणुर्लिपित्ता अहयोई दिव्वाई देवदुसज्यलाई णियसंति नियंसित्ता सव्वालंकारविभूसियोई करेंति, तरणं से सक्के देविदे देवराया ते बहवे भवणव जाव माणिए देवे एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! ईहामिंग उसभ-तुरय जोव वणलयभत्तिचित्ताओ तओ सिबियाओ विउव्वेंह, एगं भगवओ तित्थयरस्स एगं गणहराणं एवं अवसेसाणं अणगाराणं, तरणं ते बहवे भवणवइ जाव वेमाणिया तओ सिबियाओ विउव्वंति, एगं भगवओ तित्थयरस्स एगं गणहराणं एवं अवसेसाणं अणगाराणं, तरणं से सक्के देविदे देवराया विमणे णिराणंदे अंसुपुण्णणयणे भगवओ तित्थयरस्स विणट्ठ जम्मजरामरणस्स सरोरगं सीयं आरु ts आरुहिता चिगाए ठवेइ, तरणं ते बहवे भवणवइ जाव वैमाणिया "स्विपमेव भो देवाणुप्पिया खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह" हे देवानुप्रियो ! तुम शोघ्र ही क्षीरोदक समुद्र पर जाओ और वहां से क्षीरोदक लेकर आओ. इस प्रकार इन्द्र की आज्ञा सुनकर 'तणं ते आभिओगा देवा खीरोदगं साहर ति" आभियोग्ग जाति के देव क्षीरोदक समुद्र पर गये और वहां से क्षीरोदक लेकर वापिस आगये ||४८ || दाओ खीरोदंग साहरह' हे हेवानुप्रिय, तमे शीघ्र झारोह क्षीरे वो भी प्रमाणे इन्द्रनी आज्ञा सांलजीने खीरोदगं साहूति' ते सर्व आभियोग्य लतिना हेवा क्षीरोह ક્ષીરાદક લઇ તે પાછા આવ્યા. ૫૪૮૫ ४२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only समुद्र पर लो। मने त्याथी 'तपणं से आभिओगा देवा समुद्र पर गया याने त्यांथी www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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