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________________ ३९६ जम्बूद्वीपप्रचतिसूत्रे दुविहा' अर्हतः खलु ऋषभस्य द्विविधा - द्विप्रकारा 'अंतकर भूमि' अन्तकर भूमिः - अन्तस्य = भवान्तस्य मोक्षस्य करा अन्तकराः मोक्षगामिनस्तेषां भूमिः = काल: 'होत्था' अभवत् । कालो हि सर्वाधारः, अत आधारत्वसाम्येनात्र काळो भूमित्वेन विवक्षित इति । तामेवान्तकर भूमिमाह - 'तं जहा' इत्यादि । 'तं जहा ' तद्यथा 'जुगंतकरभूमीय' युगान्तकरभूमिः - युगं - पञ्चवर्षात्मकः कालः कृतयुगादिरूपो वा कालः, अयं च युगरूपः कालः क्रमिको भवति तथैव गुरुशिष्यप्रशिष्यपरम्पराऽपि क्रमिका, अतो गुरुशिष्यपरम्पराऽपि युगशब्देनेह विवक्षिता । तया गुरुशिष्यप्रशिष्यपरम्परया समुपलक्षिता या अन्तकर भूमिः - मोक्षगामिकालः सा युगान्तरकर भूमिः । तथा 'परिया अंतकर भूमीय' पर्यायान्तकरभूमि:पर्यायः - तीर्थकृतः केवलित्वकालः, तदपेक्षया अन्तकरभूमिः = मोक्षगामिकालपर्यायः । अयं भावः - लब्धकेवलज्ञानस्य भगवतो यावति केवलित्वपर्यांये व्यतीते मोक्षं गन्तुं प्रवृत्ता मोक्ष जीव को प्राप्त हो ही जाता है । " मरहओ णं उसभस्स दुविहा अन्तकरभूमी होत्था " उन आदिनाथ प्रभु के अन्तकर मोक्षगामी जीवों का काल दो प्रकार का हुआ काल सर्वाधार होता हैं अतएव आधार की साम्यता को लेकर काल को यहां भूमिरूप से कह दिया है "तं जहा" वह द्विप्रकारता इस प्रकार से है "जुगंतकर भूमीय' एक युगान्तकर भूमि और "परियायंकर भूमि य, दूसरी पर्यायान्तकर भूमि, पांच वर्ष प्रमाण काल का नाम युग है अथवा कृतयुगादिरूप काल का नाम युग है. यह युगरूप काल क्रमिक होता हैं इसलिये युगशब्द से गुरुशिष्यप्रशिष्य परम्परा भी विवक्षित हो जाती है. इस गुरुशिष्यप्रशिष्यपरम्परा से समुपलक्षित जो अन्तर भूमि है मोक्षगामी जोवों का काल हैं वह युगान्तर भूमि है. तीर्थंकर का जो केवल पर्याय का काल है वह पर्याय है. इस अपेक्षा जो मोक्षगामी जीवों का काल है वह पर्यायान्तकर भूमि है, इसका तात्पर्य ऐसा हैं जब भगवान् को केवलज्ञान हो चुका और उस अवस्था में उनकी जितनी केवली अवस्थारूप पर्याय व्यतीत हो चुकी उस समय में जितने अजर्भक्षय३५ भोक्ष वने यह न लय छे. "अरहओ णं उसभस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्या ते माहिनाथ अलुने अन्त४२ - भोक्षणाभी लवाने आज मे प्रभार ने। थये।. કાળ સર્વાંધાર હાય છે. એથી આધારની-સામ્યતાને લઈને કાળને અહીં ભૂમિ રૂપમાં કહેवामां आवेल छे. 'तं जहा ' ते द्विप्रहारता भी प्रभाछे. "जुगत करभूमीय' ४ युगान्त४२ भूमि रमने मील " परियायंतकरभूमी य पर्यायान्तर भूमि पांच वर्ष प्रमाण अजनु નામ યુગ છે. અથવા કૃતયુગાદિરૂપ કાળનું નામ યુગ છે. આ યુગ રૂપ કાળ-ક્રમક હાય છે. આ પ્રમાણે ગુરુશિષ્ય પ્રશિષ્ય પર પરા પણ કેમિક હેાય છે. એથી જ યુગ શબ્દથી ગુરુ શિષ્ય પ્રશિષ્ય પર પરા પણ વિવક્ષિત થઈ જાય છે. આ ગુરુ શિષ્ય પ્રશિષ્ય પર પરાથી સમુપલક્ષિત જે અંતકર નિ છે. મેાક્ષ ગામી જીવાના કાળ છે, તે યુગાન્તકર ભૂમિ છે. તીથ કરના જે કેલિત્વ પર્યાય કાળ છે તે પર્યાય છે. એ અપેક્ષાએ જે મેાક્ષગામી જીવાના કાળ છે તે પર્યંયાન્તકર ભૂમિ છે. આનુ તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે જ્યારે ભગવાનને કેવળ જ્ઞાન થઈ ચૂકયુ. અને તે સ્થિતિમાં તેમની જેટલા કેવલી અવસ્થા રૂપ પર્યાયવ્યતીત થઈ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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