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प्रकाशिका टीका सू० ४ जम्बूद्वीपप्राकारभूतजगत्याः वर्णनम् आगन्तुकमलरहिता, 'णिप्पंका' निष्पङ्का-पङ्क-रहिता निष्कदमा, तथा 'णिक्कंकटच्छाया' निष्कङ्कटच्छाया आवरण रहितत्वाव्याहत प्रकाशा 'सप्षभा' सप्रभा-स्वरूपतः प्रभासम्पन्नाः, प्रकाशमानेत्यर्थः, 'समरोइया' समरीचिका-किरणसम्पन्ना वस्तुजातप्रकाशि केत्यर्थः, 'सउज्जोया' सोयोता निरन्तरदिग्विदिक् प्रकाशिका, तथा 'पासाईया' प्रासादीका-प्रसादो-मनः प्रसन्नता, स प्रयोजनं यस्या इति प्रासादीया हृदयोल्लास कारिणी । 'दरिसणिज्जा' दर्शनीया-रमणीयतया क्षणे क्षणे द्रष्टुं योग्या, 'अभिरूवा' अभिरूपा-अभिमतमनुकूलं रूपं यस्याः सा तथा-सर्वथा दर्शकजनमनमनोहारिणी । 'पडिरूवा' प्रतिरूपा-अपूर्व चमत्कारसमुत्पादिका । असाधारणरूप सम्पन्नेत्यर्थः । यद्वा प्रति प्रतिक्षणं नवं नवमिव रूपं यस्याः सा तथा ।
___ 'सा णं जगई' सा च खलु जगती 'एगेणं महंत गवक्ख कडएणं' एकेन अनुपमेन महागवाक्षकटकेन-विशाल जालक समूहेन 'सबओ समंता संपरिक्खित्ता' सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्ता-सम्यक परिवेष्टिता विविधविशालगवाक्षसम्पन्नेत्यर्थः । 'से णंगवक्खकडए' स खलु गवाक्षकटकः अद्धजोयणं उड्ढे उच्चत्तेणं' अर्द्धयोजनम् ऊर्ध्वम् उपरि उच्चत्वेन-उच्छ्येण 'पंचधणुसयाइं विक्खभेणं' पञ्चधनुः शतानि विष्कम्भेण विस्तारेण, प्रज्ञप्तः । कीदृशः पुनः स गवाक्ष कटकः ? इत्याह-'सबरयणामए' इत्यादि। रहित होने से निष्कङ्कटच्छाया वाली है- अव्याहत प्रकाशयुक्त है- स्वरूप से प्रभासंपन्न है-स्वतः प्रकाशमान है, किरणयुक्त है- वस्तु समूह को प्रकाशक है, निरन्तर दिशाओं में इसका प्रकाश फैला रहता है, इसलिये सोद्योत है हृदय में उल्लास जनक होने से यह प्रासादीय है. अधिक रमणीय होने से क्षण क्षण में यह देखने के योग्य है इसलिये दर्शनीय है; सर्वथा दर्शकजनों के नेत्र और मन को हरण करनेवालो होने से यह अभिरूप है और असाधारणरूपसंपन्न होने से यह प्रतिरूप है । अथवा-क्षण क्षण में इसका रूप नवीन नवीन जैसा प्रतीत होता है इसलिये प्रतिरूप है। “सा णं जगई " वह जगती “एगेणं महंतगवक्खकडएणं सवओ समंता संपरिविखत्ता" एक विशाल गवाक्षजाल से--अनेक बड़ी २ खिडकियों से युक्त है “से ण गवक्खकडए" वह गवाक्ष जाल"अद्धजोयगं उड्ढउच्च तेणं' आधे योजन का ऊँचा है “पंच રહિત હોવાથી આ નિષ્પક છે. આવરણ રહિત નિષ્કટક છાયાવાળી છે. અવ્યાહત પ્રકાશચક્ત છે, વસ્તુ સમહની પ્રકાશિકા છે. નિરંતર દિશાઓમાં અને વિદિશાઓમાં આને પ્રકાશ વ્યાસ રહે છે. એથી આ સોદ્યોત છે, હૃદયમાં ઉલ્લાસજનક હોવાથી આ પ્રાસાદીય છે. અધિક રમણીય હોવાથી આ દર્શનીય છે સર્વથા દશ કોના નેત્ર અને મનને આકર્ષાનારી હોવાથી આ અભિરૂપ છે. અથવા ક્ષણ ક્ષણમાં આનું રૂપ નવનીત જેવું લાગે છે એથી આ પ્રતિરૂપ છે.
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