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________________ १८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सूत्रस्य मत्कृतायां मुनितोषिणीटीकायां विलोकनीया । क कस्मिन् स्थाने 'जंबूद्दीवे दीवे' १ जम्बू द्वीप:-जम्बूद्वीपनामको द्वीपः प्रज्ञप्तः १ इत्यग्रेऽपि खलु शब्दो वाक्यालङ्कारे । अनेन जम्बूद्वीपस्य स्थानं पृष्टवान् १, 'के महलएणं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे २' तथा-हे भदन्त जम्बूद्वीपो द्वीपः किं महालयः किं प्रमाणो महान् आलयः आश्रयो व्याप्यक्षेत्ररूपो यस्य स तथा कियत्प्रमाणकमहत्त्वविशिष्टाऽऽश्रयसम्पन्नः अनेन जम्बूद्वीपस्य प्रमाणं पृष्टवान् ।२। 'कि संठिए णं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे ३' हे भदन्त ! जम्बूद्वीपो द्वीपः किं संस्थितः ? किं कीदृशं संस्थानम्-आकारो यस्य स कि संस्थानोऽस्ति ? एतेन जम्बूद्वीपस्य संस्थानं पृष्टवान् ।३। 'किमायारभाव पडोयारेणं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे ४' तथा-हे भदन्त ! जम्बूद्वीपो द्वीपः किमाकारभावप्रत्यवतार:-कः कीदृशः आकारभावप्रत्यवतारः-तत्राऽऽकारः- स्वरूपं भावाः पृथिवीवर्षवर्षधर प्रभृतयस्तदन्तर्गताः पदार्थाः, तेषां प्रत्यवतार:-अवतरणं प्रकटीभावः इति यावत् यस्मिन् स तथा 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्त:-कथितः । अनेन जम्बूद्वीपस्य स्वरूपं तदन्तर्वति पदार्थाश्च पृष्टवान् ।४। इत्येवं प्रश्नचतुष्टये कृते तदुत्तर श्रवणपरायणतामुत्पादयितुं तस्य जगत्प्रसिद्ध गोत्रनामोच्चारण पूर्वकामन्त्रणेन क्रमेण भगवानुत्तरयति-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! गौतमगोत्रोत्पन्न ! इन्द्रभूते ! 'अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे' अयम् भी ऐसा ही जानना चाहिये, “भदन्त" शब्द की विस्तृत व्याख्या आवश्यक सूत्र की मुनि तौषिणी टीका में की जा चुकी है, अतः वहां से इसे देख लेना चाहिये, 'के महालए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?,, तथा हे भदन्त ! जंबु द्वीप, नाम का द्वोप कितना विशाल कहा गया है ?,, 'किं संठिए णं जंबुद्दीवे दीवे ?' तथा-हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप का संस्थान कैसा कहा गया है ? "किमायार भावपडोयारे णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ४,, ? तथा इस जम्बूद्वीप का आकार-स्वरूप कैसा कहा गया है ? ओर इसमें कौन से पदार्थ कहे गये हैं ? इसप्रकार से ये चार प्रश्न गौतम ने प्रभु से यहां पूछे हैं इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा! हे गौतम गोत्रोत्पन्न ? इन्द्रभूते !" 'अयण्णं जंवूद्दीवे दीवे सबद्दीवसमुदाणं सव्वन्भंतराए,, यह जो प्रत्यक्ष से दृश्यमान द्वीप है कि जहां पर हम सब रहते है इसी का नाम जम्बूद्वीप है यह जम्बूद्वीप नाम का द्वीप समस्तद्वीप પણ એવી રીતે જ સમજવું જોઈએ. ભદન્ત શબ્દની વિસ્તૃત વ્યાખ્યા આવશ્યક सूत्रनी भुलितोषियी टीम ४२वामां आवे छे. तेथीत त्यांची सभ देवी 'के महालए ण भते जंबुद्दीवे दीवे ?" ता महन्त ! मा पूदी५ नोभे द्वी५ हेटसा विशाण मां भाव छ? "fक संठिए णं जंबुद्दीवे २ ? तभी 3 महन्त ! म पूदीपर्नु सस्यान ४ामा मावत छ ? “किमायारभावपडोयारे णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ४७ तम५ मा दीपन। मा४।२-२५३५-डेको छ ? अने मां / ४४ જાતના પદાર્થો છે ? આરીતે આ ચાર પ્રશ્નો ગૌતમે પ્રભુને અહીં પૂછયા છે. એનાં Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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