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________________ २९८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे इति च न शङ्कयम् , केषांचित् पक्षिणाम् अरकापेक्षया यथासंभवं बहुबहुतर बहुतमधनुः पृथक्त्वप्रमाणशरीरत्वेन तत्कालवति युगलिक नरहस्त्यपेक्षयाऽधिकप्रमाणशरीरैस्तैः पक्षिभिस्तेषां नराणां मृतशरीरसंवहनसंभवादिति ।। पुनगौतमस्वामी पृच्छति-'तीसे गं भंते ! समाए भरहे वासे कइविहा' हे भदन्त ! तस्यां खलु समायां भरते वर्षे कतिविधाः कतिप्रकाराः कतिजातिया 'मणुस्सा अणु सज्जित्था' मनुष्या अन्वषजन् अनुषक्तवन्तः-कालाकालान्तरमनुवृत्तवन्तः-सन्ततिभावेनाभूवन् ? इत्यर्थः । भगवानाह-गोयमा ! छविहा पण्णत्ता' हे गौतम ! षविधाः मनुप्याः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'पम्हगंधा' पद्मगन्धा:- पद्मस्येव गन्धो येषां ते तथापद्मगन्धवन्तो मनुष्या इत्यर्थः 'मियगंधा' मृगगन्धाः- अत्र मृगशब्देन मृगमदः कस्तूऐसी आशंका की जावे कि उत्कृष्ट सेभी धनुः पृथक्त्व प्रमाण शरीर वाले उन पक्षियों द्वारा अपनी अपेक्षा उत्कृष्ट प्रमाण वाले मनुष्य शरीरों को कैसे उठा कर समुद्र आदि में डालते होगे ! तो इसका उत्तर यही है कि कितनेक पक्षियों के शरीर का प्रमाण अरक की अपेक्षा यथा संभव बहु, बहुतर और बहुतम धनुः पृथक्त्व प्रमाण वाला होता है अतः तत्कालवर्ती युगलिक नर और हस्ती की अपेक्षा उनके शरीर का प्रमाण अधिक होने से वे पक्षी उन मनुष्य के मृत शरीर को उठा सकने में समर्थ हो जाते हैं। अब गौतम स्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-"तीसेणं भंते ! समाए भरहे वासे कइविहा मणुस्सा अणुस्सज्जित्था" हे भदन्त ! उस काल में भरतक्षेत्र में कितने प्रकार के मनुष्य काल से कालान्तर में सन्ततिभाव से उत्पन्न हुए ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! छविहा पण्णत्ता तं जहा-पम्हगंधा, मियगंधा, अममा, तेयतली, तहा, सणिचारी" हे गौतम ! छ प्रकार के मनुष्य उत्पन्न हुए, जैसे- पद्मगन्ध- पद्म की गन्ध के समान गंध से युक्त शरीर वाले मनुष्य, मृगगन्ध-मृग की अर्थात् कस्तुरी की गन्ध के समान गन्ध से युक्त शरीर वाले બીજી શંકા ઉઠાવી શકે છે કે ઉત્કૃષ્ટથી પણ ધનુ પૃથકૂવ પ્રમાણ શરીરવાળા તે પક્ષીઓ પિતાના કરતાં ઉત્કૃષ્ટ પ્રમાણુવાળા મનુષ્ય શરીર ને કેવી રીતે ઉઠાવી ને સમુદ્ર વગેરેમાં નાખતા હશે ? તે આને જવાબ એ છે કે કેટલાક પક્ષીઓના શરીરનું પ્રમાણ અરકની અપેક્ષાએ યથાસંભવ બહુ, બહુતર અને બહુતમ ધનુ પૃથકત્વ પ્રમાણુવાળા હોય છે. એથી તત્કાળવતી યુગલિક કરો અને હસ્તીઓની અપેક્ષાએ તેમના શરીરનું પ્રમાણ અધિક હેવાથી તે પક્ષીઓ તે મનુષ્યોના મૃતશરીરને ઉચકી શકવામાં સમર્થ હોય છે. वे जीतभस्वामी प्रभुने प्रश्न ४२ छ 'तीसेणं भंते । समाए भरहे वासे काविहा मणु स्सा अणुसज्जित्था" ३ मत आणे भरतक्षेत्रमा प्रारना मनुष्या थी - तरमा सन्ततिमाथी उत्पन्न थया ? सेना ramम प्रभु ४ छ-'गोयमा छव्विहा पण्णता तं जहा पम्हगंधा, मिअ गंधा, अममा, तेअतली, सहा सणिचारी' ' गौतम' छ tરના મન તે કાળે ઉત્પન્ન થયા. જેમકે પદ્મગન્ય-પદ્યના ગંધ જેવા ગંધથી યુક્ત શરીર વાળા મનુષ્ય, મૃગગન્ધ મૃગની એટલે કે કસ્તુરીના ગંધ જેવા ગંધથી યુક્ત શરીરવાળા Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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