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________________ २५६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विशेषस्तस्य प्रत्यवतारः प्रादुर्भावः ‘पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः प्ररूपितः भगवानाह—'गोयमा" हे गौतम ! 'कूडागारसंठिया' कूटाकारसंस्थिताः-कूटं-शिखरं तदाकारसंस्थिताः-तदाकृत्तिकाः तथा-'पेच्छाछत्तझय थूम तोरण गोउर वेइया चोप्पालग अट्टालगपासाय हम्मियगवश्ख वालग्गपोइया बलभीघरसंठिया' प्रेच्छाच्छत्रध्वज स्तूप तोरण गोपुर वेदिका चोप्पालकाहालकप्रासादहर्म्यगवाक्षवालाग्रपोतिका वलभीगृहसंस्थिताः अत्र प्रेक्षादि वलभीगृहान्तशब्दानां द्वन्द्वः, तद्वत् संस्थिताः-संस्थानयुक्ता इति विग्रहः, 'संस्थिताः, शब्दस्य द्वन्द्वान्ते श्रयमाणत्वात् प्रेक्षादिषु प्रत्येकत्रान्वयः । तेन-प्रेक्षा संस्थिताः छत्रसंस्थिताः इत्यादि रूपेण पदयोजना कार्या । तत्र प्रेक्षापदं पदैकदेशे पदसमुदायोपचारात् प्रेक्षागृहपर, ततश्च प्रेक्षागृहसंस्थिताः-प्रेक्षागृह-नाटकगृहं तद्वत् संस्थिताः-तादृशसंस्थान युताः प्रेक्षागृहाकारा इत्यर्थः। तथा छत्र संस्थिताः-छत्राकाराः, ध्वज संस्थिताः ध्वजाकाराः तोरणसंस्थिताः तोरणाकाराः, स्तूपसंस्थिताः स्तूपाकाराः गोपुरसंस्थिताः गोपुराकाराः, वेदिकासंस्थिताः-वेदिका-वितर्दिका-उपवेशनयोग्या भूमिस्तद्वत्संस्थिताः-तदाकाराः चोप्पालकसंस्थिता-चोप्पालकं वरण्डा, इति भाषा प्रसिद्धम्, तद्वत्संस्थिताः तदाकाराः, डोयारे पण्णते " हे भदन्त ! उन वृक्षों का स्वरूप कैसा कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं “ गोयमा ! कूडागार संठिया पेच्छा छत्तज्झयथूमतोरणगो उरवेइया चोप्पालग अट्ठालगपासाय हम्मिय गवस्वतालगपोइयावलभीघर संठियो" हे गौतम ! वे वृक्ष कूट-शिखर का जैसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं. प्रेक्षा-प्रक्षाग्रह-सिनेमाग्रह या नाटकग्रह-का जेसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं छत्र-छाते का जैसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं, ध्वजा का जेसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं, स्तूपका (चबूतरा) जैसा अकॉरेटोता है वैसे आकार वाले होते हैं, तोरण का जैसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं, गोपुरका जैसा आकार होता है, वैसे आकार वाले होते हैं, उपवेशन योग्य भूमि का जैसा आकार होता है वैसे आकार वाले होते हैं, चोप्पालक वरंडा का जैसा आकार रे छ. "तेसिणं भंते ! रुक्खाण केरिसए आयारभावपडायारे पण्णत्ते" हे सहन्त ! ते वृक्षानुस्१३५ युवामा ५०यु छ ? सेना उत्तम प्रभु ४९ छ : “गोयमा ! कूडागारसंठिया पेच्छा छत्रज्झयथूम तारण गोउरवेई या चोप्पालग अट्टालग पासाय हम्मिय गवक्खवालग्ग पोइया वलभीधरसंठिया" के गौतम ! ते वृक्षा 2-शि५२-नसा२ સદશ આકારવાળા હોય છે. પ્રેક્ષા-પ્રેક્ષાગૃહ-નાટક ગૃહને જેવો આકાર હોય છે, તેવા આ કારવાળા હોય છે. છત્રનો જેવો આકાર હોય છે. તેવા આકારવાળા હોય છે. દવાનો જે આકાર હોય છે, તેવા આકારવાળા હોય છે. સ્તૂપને જે આક ર હોય છે, તેવા આકારવાળા હોય છે. તેરણ ના જેવો આકાર હોય છે. તેવા આકારવાળા હોય છે. ગોપુરના જેવો આકાર હોય છે. તેવા આકારવાળા હોય છે. ઉપવેશન યોગ્ય બમિના જે આકાર હોય છે. તેવા આકારવાળા હોય છે. અટ રને જે ખાકાર હોય છે, તેવા આકારવાળા હોય છે, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003154
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherJain Shastroddhar Samiti Ahmedabad
Publication Year1980
Total Pages994
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size29 MB
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