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सिरिमूलसंघदेसिय पुत्थयगच्छ कोडकुंदमुणिणाहं (1) परमण्ण इंगलेसर्बलम्मि जादमुणिपहद (हाण) स्स॥ ११८॥ सिद्धताहयचंदस्स य सिस्सो बालचंदमुणिपवरो। सो भवियकुवलयाणं आणंदकरो सया जयऊ॥११९॥ सदागम-परमागम-तक्कागम-निरवसेसवेदी हु। विजिदसयलण्णवादी जयउचिरं अभयसूरिसिद्धति ॥१२०॥ णयणिक्खवपमाणं जाणित्ता विजिदसयलपरसमओ। वराणवइणिवहवंदियपयपम्मो चारुकित्तिमुणी ॥ १२१॥ णादणिखिलत्थसत्थो सयलणरिंदेहिं पूजिओ विमलो। जिणमग्गगमणसूरो जयउ चिरं चारुकित्तिमुणी ॥ १२२॥ वरसारत्तयाणउणो सुहं परओ विरहियपरभाओ। भवियाणं पडिवोहणपरो पहाचंद णाम मुणी ॥ १२३॥
इति भावसंग्रहः समाप्तः ।" इन गाथाओंसे नीचे लिखे हुए आचार्योंका पता लगता है:
१-बालचन्द्रमनि । इन्होंने श्रुतमुनिको श्रावककी दीक्षा दी थी। आ. स्रवत्रिभंगीमें भी श्रुतमुनिने इनका स्मरण किया है।
२-अभयचन्द्र। ये मूलसंघ, देशीय गण, पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्दाम्नायके आचार्य थे और इंगलेश नामक स्थानके मुनियोंमें प्रधान थे। ये व्याकरण, धर्मशास्त्र और न्यायशास्त्र आदि अशेष विषयों के ज्ञाता थे और सारे अन्य वादियों को इन्होंने जीता था। बालचन्द्र मुनि इनके शिष्य थे । श्रुतमुनिने इनसे मुनिदीक्षा ली थी और शास्त्राध्ययन भी किया था।
३-प्रभाचन्द्र । ये सारत्रय अर्थात् समयसार, पंचास्तिकाय और प्रवचनसारके ज्ञाता थे, परभावोंसे रहित थे और भव्य जनोंको प्रतिबोधित करनेवाले
१ कर्नाटक प्रान्तमें जैनोंका यह कोई बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है। यहाँपर अनेक आचार्य और विद्वान् हो गये हैं. अनेक आचार्योकी निषद्यायें बनी हुई हैं, भट्टारकोंकी एक गद्दी रही है और संभवतः बाहुबलिकी भी कोई मूर्ति है। श्रवणबेलगोलके १०८ वें लेखमें लिखा है:
नन्दिसंघे स देशीयगणे गच्छेच्छपुस्तके। इङ्गुलेशबलि जर्जीयान्मंगलीकृतभूतलः ॥ २२॥
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