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________________ आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख ४२३ .क-भा वरचारित्रननून पुण्यजननं..... सुरनीरेज सुमित्रनार्ज्जितदया.. 1 पवित्रनेन्दु भुवनं सङ्कीर्त्तिसत्वर्त्तिपं वरसैद्धान्तिकमाघनन्दिमुनिपं श्रीकेाण्डकुन्दान्वयं ॥ २० ॥ ..... तच्छिष्यरु ॥ क । चारुतरकी र्त्तिदिग्वि स्तारितनतनुप्रताप...... । .य भानुकीर्त्ति वि...... . बुधनिकर ॥ २१ ॥ आ-मुनिय शिष्यनखिल-कलामयनुदारचरितनतिविशदयशेो ...... धाम मुनिपुङ्गव ...... वर्णिपुदु माघणन्दिति ॥ २२ ॥ वृ || वरविद्यामद्दितं सुराचलदवाल, श्रीमाघणन्दित्रतीश्वरनिर्द..... .दद्रिसानु सुपरीतानून शिष्यौघम । . त्रितुलप्रभृतियन्तारय्ये ता.....कों .... ......मण्डल वेन्दोडिन्नवर पेम्पं पेल्वेनेनेन्दोडं ||२३|| व || यन्तु विराजिसुत्तिई समुदायदल्लि माघणन्दि-भट्टारकर गुडं सोवरस-सूनु सान्तण्यनुदेन्तपुदु || वृ ।। जगतीसम्भूतधर्म्माङ्कुर... देम्बन्ते भूकान्ते रा... जगदि पोतिर्ह पोगेल्सद कलसविदेम्बन्ते भव्यावली के - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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