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________________ आसपास के ग्रामों के प्रवशिष्ट लेख ३८६ स्करचञ्चत्कीर्तिकान्तं बुधजनविनुतं भानुकीर्त्तिव्रतीन्द्रं ।। १४ ॥ सिद्धान्तोद्धतवार्द्धिवर्द्धन विधा शुक्लै कपोद्गतस्ताराणामधिपो जितस्मरशर: पारार्थ्यपारङ्गतः । विख्यातो नयकीति देवमुनिपश्रोपादपद्मप्रियस्स श्रीमान्भुवि भानुकोत्ति मुनिपो जीयादपारावधि।।१५।। शक वर्षद १०६५ नेय विजयसंवत्सरद पौष्यबहल चौतिमङ्गलवारदन्दु उत्तरायण सङ्क्रान्तियल्लि भानुकीर्ति सिद्धान्त देवरनधिपतिगलागि माडि तद्गुरुगलप्प नयकीर्तिसिद्धान्तचक्रवर्त्तिगलगेधारापूर्वकं माडि ।। वृ ।। अचलोयुतगोम्मटेशविभुगं श्रीपार्श्वदेवङ्गवु द्व-चतुर्विंशतितीर्थकर्गवेसवी-सत्पूजेगं भोगकं । रुचिरानोकरदानकं मुददे बिट्ट बेकनेम्बूरनुद-चरित्रं सले मेरुवुल्लिनेगवी-बल्लालभूपोत्तमं ।। १६ ।। क्रमदि गोम्मटतीर्थपूजेगवशेषाहारदानकवुत्तमर मुख्यरनागि माडि विदित श्री भानुकीर्तीश्वर। विमदङ्गो-नयकीति-देवयतिगाकल्पं सलल्बेकनं सुमनस्कं विभुहल्लपं बिडिसिदं श्री वीरबल्लालनि ॥१७॥ ग्राम सीमे ॥ ( यहाँ सीमा का वर्णन है) इदु बेक्कन चतुस्सीमे ॥ स्वदत्ता परदत्तां वा ( इत्यादि) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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