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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३५१ ४०८ ( ३१५ ) कोलिपाके माणिक्यदेवन गुडु जिन वर्म जोगि कङ्करि-जगदाल मोरमूर आदिनाथ नमोऽस्तु । ४०६ (३१६ ) श्रामत् रूवारि बिदिगइ कम्मटद सुलेरिद मुट्टिदर मेयिजायिले पेरगगिन् । ४१० ( ३१७ ) परनारी पुत्रक मण्टर तोल्तु केलेगे कुप्र्पात पिसुणगडसर्पतोदल्दर बीव बावन बण्ट गुण्डचक्र जेडुगं ४११ ( ३१६ ) स्वस्ति श्री पराभव-संवत्सरद मार्गशिर अष्टमी शुक्रवारदन्दु कोमरच णा अकन तम्म मले पाल-अप्पाडि नायक इल्लिदु चिक्कबेट्टकेच्च ॥ ४१२ ( ३२० ) गडिब गड़गे क ४० ४१३ ( ३२२) विजयधवल । ४१४ ( ३२३) जयधवल ४१५ (३२४) सके १५७५ मास्वा पाण्डव गोकेवा(नागरीलिपि में) सस्नोजीन्वो सफल जत्रा। ४१६ ( ३२५ ) माणि-वीरभद्रन पण्डरद नपा...कन ...बैरव बीरेव...हिब...न...तन... ४१७ (४७६ ) ओं नमो सिधव्य ॥ श्री गोमटेश प्रसन धरणप्पासून ॥ हुब्बल्लि स्मरणार्थ चिं। मातप्पा अरपण हुब्बल्लि ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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