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________________ ३३२ विन्ध्यगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख सिद्धान्तचक्रवत्ति गल गुड बल्लेय दण्डनायकं माडिसिदं ॥ ३२१ ( १८१ ) दुर्मुखि संवत्सरद पुष्यमासद शुद्ध बिदिगे मङ्गलवार कापणपुरद... ..य-सेट्टि गुम्मटसेट्टि दनद.........वादरु.... ३२२ (१६२) श्रोसंवत् १५४६ वर्ष जेष्ट सुदि ३ रवि नागरी लिपि में वासरि गोम्मट स्वामी की जात्रा कियो गोमट बहुपालै प्रजौसवाले कदिकबंस ब्रमचारी पुरस्थाने पुरी ब्रात्रुपुत्रसम... ३२३ (१६३) श्रोनयकीर्त्ति सिद्धान्तचक्रवर्ति गल शिष्यरु श्रीबालचन्द्र देवर गुड्ड अङ्किसेट्टि अभिनन्दन देवरं माडिसिदं । ३२४ ( १८४) श्रीमूलसङ्घ देसियगण पुस्तकगच्छ काण्डकुन्दान्वयद श्रो-नयकीर्ति सिद्धान्तचक्रवर्तिगलगुडु कम्मटद रामि सेट्टि माडिसिद ॥ ३२५ ( १६५) श्री नयकीर्त्ति सिद्धान्तचक्रवर्तिगल शिष्यरु श्रीबालचन्द्र देवर गुडु सुङ्कद भानुदेव हेग्गडे माडिसिद अजितभट्टारकरु॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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