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________________ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३१७ द्दि मोहमगल्द् लान्तरि......भाव्यमन्वर्पिन्... ण्डे... इ-वलू - विषयङ्गलनात्म-वश-कमविदु कट. .....feerat स्थिता .. श्वररि... नन......रेन्द्र - राज्य राधिता...विमु विभूति - सास्वतमेदिदान् । ..... [ संयमी इन्द्रनन्दि आचार्य ने मोह विषयादि को जीतकर कट (a ) पर्वत पर समाधि मरण किया । ] २०६ ( ८६ ) स्वस्ति श्री कालत्तर सङ्घदा देव ... खन्ति - यनिसि .. २०७ ( १७ ) नमिलूरा सिरिसङ्घद् प्राजिगणदा राशीमती - गन्तियार अमलम् नल्तद शीलदि गुणदिना मिक्कोत्तमम्मी लेदोरू । नमगिन्दोलित एन्दु एरि गिरियान्सन्यासनं योगदोलू नमा चिन्तयदु से मन्त्रमण्मरि ए स्वग्र्गलयं एरिदार् ॥ [ नमिलूर संघ, प्रजिगण की साध्वी राज्ञीमती गन्ति ने पर्वत पर संन्यास धारण कर स्वर्ग-गति प्राप्त की । ] • २०८ ( ६ ) श्री स्वस्ति तनगे मृत्यु वरवानरिदे पेर्वाण-वंशदान कालनिगेकसुदे... प्पिन राज्य वीतिन् । घा...क... मोदसुता मता कच्चि निधानम...... सुर...ग-गतियुल नेले-काण्डन् । Jain Education International ...... [ इस लेख में पेण वंश के किसी व्यक्ति के समाधि-मरण का उल्लेख है ] For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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