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________________ चन्द्रगिरि पर्वत के अवशिष्ट लेख ३१५ प्रथितार्थप्पदे नान्त निस्थित-यशा खायुः-प्रमा...यक स्थिति-देहा कमलोपमङ्ग सुभमुम स्वल्लॊकदि निश्चितम् ॥ [ इस लेख में किसी के समाधिमरण की सूचना है।] १९१ (७८) सहदेव माणि । १६२ (७६) ( लगभग शक सं० ६७२ ) सुन्दरपेम्पदुप्रतपदोगिद.........वार्द्धदनिन्धमेन्दु पिन बन्दनुरागविन्दु बलगा...ण्डु महोत्सवदेरि शैलमान् । सुन्दरि सोचदार्यदेरदे...दु विमानमोडिप्पि चित्तदिम इन्द्र समानमप्प सुख.. ण्डदे 'क्षणदेरिद स्वर्गवा ॥ [ सौचदार्थ (? शुद्धमुनि ) ने पाकर हर्ष से पर्वत की वन्दना की और अन्त में यहां ही शरीर त्याग किया। ] १६३ (८०) (लगभग शक सं० ६२२) महादेवन्मुनिपुङ्गवन्नदर्पि कलु पईप महातवन्मरणमप्पे तनगा... कमु कण्डे... महागिरि म...गलेसलिसि सत्या...नविन्तीमहातवदोन्तु मलेमेल्वलवदु दिवं पोक्क [ महादेव मुनिपुङ्गव ने मृत्युकाल निकट श्राया जान पर्वत पर तपश्चरण किया और स्वर्ग-गति प्राप्त की।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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