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________________ २६८ श्रवण बेलोल के आसपास गच्छद श्रीमतु शुभचन्द्रसिद्धान्त-देवर-शिष्यरप्प माध (ब) चन्द्र देवगर्गे धारा-पूर्वकं माडिकोट्ट दत्ति ।। श्लोक-स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेत वसुन्धरां । षष्टिज़र्ष-सहस्राणि विष्टायां जायते कृमिः ।।१५।। सीता-कान्तिगे रुक्मिणिगातत-येशनेविराजनाङ्गनेयेमातादोरे सरि समं तोणे भूतलदोलग एचिकब्बे क... रूपिं ।। १६ ।। दानदातभिमानदालीमानिनिगेयिल्ल सतिय...... केनार्थियेन्दु कुडुवले दानमन् एचब्बेयत्तिमब्बरसियवोल ॥ १७ ।। इन्तु परम...राज-दण्डनायनदण्डनायकिति श्रीमतु शुभचन्द्र सिद्धान्त-देवर गुड्डि एचिकब्बेयु तम्मत्ते बागणब्बेडे शासनमं निलिसि महापूजेय माडि महादानं गेट्दु तेङ्गिन-तोण्टव बिहर मङ्गल श्रो॥ [ इस लेख में होरपलवंशी नरेश विष्णुवर्द्धन और उनके दण्डनायक प्रसिद्ध गङ्गराज के वशों का परिचय है। गङ्गराज के ज्येष्ठ भ्राता बम्मदेव के पुत्र एच दण्डनायक ने कोपड़, बेल्गुल आदि स्थानों में अनेक जिनमन्दिर निर्माण कराये और अन्त में संन्यास विधि से प्राणोत्सर्ग किया। गङ्गराज के पुत्र बोप्पदेव दण्डनायक ने अपने भ्राता एचिराज की निषद्या निर्माण कराई तथा उनकी निर्माण कराई हुई बस्तियों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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