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________________ २६० श्रवण बेल्गोल नगर में के शिलालेख वागिधारयनु येरदु कोट्टेवुयेन्दुसमस्तरु प्राडलागि। स्तानदवरिगे वत्त क-गुरस्तर कैयल्लु । गुम्मट-नाथ-स्वामिय सन्निधियल्लि देवरु-गुरु-साक्षियागि धारयनु यरिसि। प्राचन्द्राक-स्तायवागि देवतासेवेयनु माडिकोण्डु सुकदल्लि यीहरु एन्दु बिडिसि कोट्ट धर्म-शासन ॥ मुन्दे बेलुगुलद. स्तानदवरु स्वास्तियनु प्रवानानोब्बनु अडहु-हिडिदन्तवरु अडव कोटन्तवरु धरुशन धर्मक्के होरगु स्थान-मान्यके कारुणविल्ल । यिष्टक्कु मीरि अडवकोटन्तवर अडव हिडिदन्तवरनु ई-राज्यक्के अधिपतियागिहन्थ धोरेगल ई-देवर धर्मवनु पूर्व मेरेगे नडसलुल्लवरु ।। ई-मेरेगे नडसलरियदं उपेक्षेय दोरेगलिगे वारणासियल्लि सहस्र कपिलेयनु ब्राह्मणन्नु कोन्द पापक्कं हाहरु येन्दु बरेसि कोट्ट धर्म शासन मङ्गलमहा श्री श्री श्री ॥ [ कुछ विपत्ति के कारण देवर बेल्गुल के स्थानकों ने गुम्मटनाथ स्वामी की दान-सम्पत्ति महाजनों को रहन कर दी थी। महाजनों ने बहुत समय तक वह सम्पत्ति अपने कब्जे में रखकर उसका उपभोग किया : मैसूर के धर्मिष्ठ नरेश चामराज वोडेररय ने इसकी जांच-पड़ताल कर रहनदारों को बुलाया और उनसे कहा कि हम तुम्हारा कर्ज अदा करेंगे, तुम मन्दिर की सम्पत्ति को मुक्त कर दो। इस पर रहनदारों ने कहा कि अपने पितरों के कल्याण के हेतु हम स्वयं इस सम्पत्ति का दान करते हैं। तत्र नरेश ने वह दान करा दिया और आगे के लिये यह शासन निकाल दिया कि जो कोई स्थानक दानसम्पत्ति को रहन करेगा व जो महाजन ऐसी सम्पत्ति पर कर्ज देगा वे दोनों समाज से बहिष्कृत समझे जावेंगे: जिस राजा के समय में ऐसा कार्य हो उसे उसका न्याय करना चाहिये। जो कोई इस शासन का उल्लंघन करेगा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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