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________________ २७० श्रवण बेलगोल नगर में के शिलालेख धरयं गल्दिह तिण्पुल्लननुदधियनेनेम्ब गुण्पुल्लनं मन्दरमं माऊल्व पेम्पुल्लननमर-महोजातमं मिक्क लोकात्तरमप्पाप्पुल्लनंपुल्लननेसेव जिनेन्द्राङ्घि, पङ्कज-पूजास्कराल तल्पोयदलम्पुल्लनननुकरिसल मर्त्यनावोंसमर्थ १६ सुमनस्सन्तति-सेवितं गुरु-वचो-निदिष्ट-नीति-क्रम समदाराति-बल-प्रभेदन-कर श्री-जैन-पूजा-समाज-महोत्साह-पर पुरन्दरन पेम्पं ताल्दि भण्डारि-हलमदण्डाधिपनि पं महियालुद्यद्वैभव-भ्राजितं ।। २० ।। सततं प्राशि-वधं विनोदमनृतालापं वचः-प्रौढ़ि सन्ततमन्यास्र्थमनील्दु कोल्बुदे वलं तेजं पर-स्त्रीयराल । रति-सौभाग्यमनून-काङ २ मतियाटतेल्लार्गमापोल्तपब्बतरत्न-प्रकरक्के-शील-भट-रोल्गाहुल्लनं हल्लनं ॥२१ ।। स्थिर-जिन-शासनोद्धरणरादियोलारेन राचमल्ल-भूवर-वर-मन्त्रि-रायने बलिक्कं बुध-स्तुतनप्प विष्णु-भूवर-बर-मन्त्रिगङ्गणन मत्ते बलिक्क नृसिह-देव-भूवर-वर मन्त्रि हुल्लने पेरगिनितुल्लड पेललागदै ।। २२ ।। जिन्द-गदितागमार्थ-विदरस्त-समस्त बहिर प्रपञ्चरत्यनुपम-शुद्ध-भाव-निरतर्गत-मोहरेनिप्प कुक्कुटासन-मलधारि-देवरे जगद्गुरुगल गुरुगल निन-व्रतकेनेगुणगौरवक्के ताणेयारो चमूपति-हल्ल-राजना ।। २३ जिन-माहोद्धरणङ्गलिं जिन-महा-पुजा-समाजङ्गलिजिन-योगि-ब्रज-दान दिं जिन-पद-स्तात्र-क्रिया निष्ठयि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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