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________________ २४० श्रवणबेलगोल नगर में के शिलालेख करि-पति- गमने तनूदरि धरेयाल कालव्वे रूपिनागर मादल ॥ ३१ ॥ तत्सहोदरि ॥ धरेयोल रूढिय मासवाडियरसं हेम्माडि- देव गुणाकरना- भूपन चित्त-वल्लभे लसत्सौभाग्ये राङ्गानिशाकर-ताराचल-तार-हार- शरदम्भोदस्फुरत्कीर्त्ति-भासुरेयप्पाचल- देवि विश्व भुवन प्रख्यातिय ताल्दिदलू || ॥ ३२ ॥ तत्सहोदर || वर - विद्वज्जन कल्प-भूजनमलाम्भोरासि गम्भीरनुदूर र-दर्प- प्रतिनायक - प्रकर- तीव्र ध्वान्त-सङ्घात-संहरणार्क शरदभ्रशुभ्रविलसत्कीर्त्यङ्गनावल्लभ धरेयोल सावण-नायकं नेगल्दनुद्यद्वैर्य-शौय्यीकर ।। ॥ ३३ ॥ कं ॥ गिरिसुतेगे जह्न कन्नेगे धरणी-सुतेगन्तिमब्बे गनुपम-गुण-दो । दोरेयेन लिन्ती सकलो र्व्वरेयोल बाचव्वे शीलवति सति नेगल्दल ॥३४॥ तत्पुत्रं ॥ परसैन्याहि-विहङ्ग नूर्जितयशस्सङ्ग जिनेन्द्रांघ्रि-पद्म-रज-भृङ्गनुदार-तुङ्गनेसेदं तन्नोप्पुवीसद्गुणो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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