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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख २२३ [नोट- केवल यही एक लेख है जिसमें चामुण्डराय मंत्री का स्वतन्त्र और विस्तृत रूप से वर्णन पाया जाता है। दुर्भाग्यवश यह लेख का एक खण्ड मात्र है। ज्ञात होता है कि अपना एक छोटा सा लेख नं० ११० (२८२) लिखाने के लिये हेगडे कण्णाने इस महत्त्वपूर्ण लेख की तीन बाजू घिसवा डाली है। यदि यह लेख पूरा मिल जाता तो सम्भव है कि उससे चामुण्डराय और गोम्मटेश्वर मूति के सम्बन्ध की अनेक बातें विदित हो जाती जिनके विषय में अब केवल अनेक अनुमान ही लगाये जाते हैं। ११०. ( २८२) उसी स्तम्भ पर । लगभग शक सं० ११२२.) ( दक्षिणमुख) श्री-गोम्मट-जिन-पायद चागद कम्बक्के यक्षनं माडिसिदं। धीगम्भीरगुणाढ्य भोग-पुरन्दरनेनिप्प हेगडे करणं ॥ [गम्भीर बुद्धि और गुणवान् हेगडे कण्ण ने गोम्मट जिन के सन्मुख त्यागद स्तम्भ के लिये यक्ष देवता निर्माण कराया । ] १११ (२७४) अखण्ड बागिलु के पूर्व की ओर चट्टान पर (शक सं०.१२६५) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोध-लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन-शासनं ॥ १॥ श्रीमूल-सङ्घपयःपयोधिवर्द्धनसुधाकराःोबलात्कारगणकमल-कलिका-कलाप-विकचन-दिवाकरा:...बनवा..तकीर्ति १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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