________________
विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख १६६ साहस्रकपिलेयनु ब्राह्मणरनु कोन्द पापक्के होगुवरु येन्दु बरेद शिलाशासन ।। श्री श्री ।।
[ बेल्गुल मन्दिर की ज़मीन आदि बहुत दिनों से रहन थी। उक्त तिथि को महाराज चामराज प्रोडेयर ने चेन्नन्न आदि रहनदारों को बुलाकर कहा कि तुम मन्दिरों की भूमि को मुक्त कर दो, हम तुम्हारा रुपया देते हैं। इस पर रहनदारों ने अपने पूर्वजों के पुण्य-निमित्त बिना कुछ लिये ही श्रीगोम्मटस्वामी और अपने गुरु चारुकीर्ति पण्डित देव की साक्षी में मन्दिरों की भूमि रहन से मुक्त कर दी और यह शिलालेख लिखाया।
८५ ( २३४) गोम्मटेश्वर-द्वार की बाई ओर एक पाषाण पर
( लगभग शक सं० ११०२ ) श्रीगोम्मटजिननं नरनागामर-दितिज-खचर-पति-पूजितनं । योगाग्निहतस्मरनं
योगिध्येयननमेयनं स्तुतियिसुवें ॥१॥ क्रमदि मेवाणर्दारद क्रमदे मातं बिट्ट तन्निट्ट चक्रमदुं निःप्रभमागे सिग्गनोलकोण्डात्माग्रजङ्गोल्पु गेरदुमहीराज्यमनित्तु पोगि तपदि कारि विध्वंसियाद महात्मं पुरुसूनुबाहुवलिवोल मत्तारो मानोन्नतर् ॥२॥ धृतजयबाहुबाहुबलिकेवलिरूपसमानपञ्चविं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org