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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
७७ (१८४)
पद्मासन पर
( लगभग शक सं० १०७२) स्वस्ति समस्तदैत्यदिविजाधिप-किन्नर-पन्नगानमन्मस्तक-रत्ननिर्गत-गभस्तिशतावृत-पाद......। प्रास्त-समस्त-मस्तक-तमः-पटलं जिनधर्मशासनम् विस्तरमागेनिल्के धरे-वारुधि-सूर्यशशाङ्कल्लिनं ॥ १ ॥ [जैनशासन सदा जयवन्त हो।]
७८ (१८२) वाम हस्त की ओर बमीठे पर
(लगभग शक सं० ११२२ ) श्रीनयकीर्तिसिद्धान्तचक्रवर्तिगल गुडु श्रोबसविसेट्टियरु सुत्तालयद भित्तिय माडिसि चव्वीसतीर्थकर माडिसिदरु मत्त श्री बसविसेट्टियर सुपुत्ररु नम्बिदेवसेट्टि बोकि सेट्टि जिन्निसेट्टि बाहुबलि-सेट्टि तम्मय्य माडिसिद तीर्थकर मुन्दण जालान्दरवं माडिसिदरु ॥
[नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्ति के शिष्य बसविसेट्टि ने परकोटे की दीवाल बनवाई और चौबीस तीर्थंकरों को प्रतिष्ठित कराया व उनके पुत्र नम्बिदेव सेटि, बोकिसेहि, जिनिसेष्टि और बाहुबलि सेट्टि ने तीर्थ करों के सन्मुख जालीदार वातायन बनवाया।]
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