SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 304
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख बलद पाडर्पु वेड गड चार्श्वक चार्व्वक निम्म दर्पमं सलिपने गोपणन्दि - मुनिपुङ्गवनेम्ब मदान्ध सिन्धुरं ॥ १२ ॥ ( दक्षिण मुख ) तगयल जैमिनि- तिप्पिकोण्डु परियल वैशेषिकं पोगदुण्डिगेयोत्तल सुगतं कडङ्गि बले-गोयलक क्षपादम्बिडलूपुगे लोकायतनेयदे शाङ्ख्य नडसल्कम्मम्म षट्तर्क-वीथिगलालूतूल्दि तु गेापणन्दि - दिगिभ - प्रोद्भासि - गन्धद्विपं ॥ ॥ १३ ॥ दिनुविन्यवादि- मुख-मुद्रितनुद्धतवादिवाग्बलोटूट-जय-काल-दण्डनपशब्द-मदान्ध - कुवादि- दैत्य-धूजटि कुटिल प्रमेय-मद-वादि-भयङ्करनेन्दु दण्डुलं स्फुट - पटु-घोषदिक्-तटमने यूदितु वाकु- पटु-गोपनन्दिय कन्द || एननेननेले पेल्वेनण्ण स - परम- तपोनिधान वसुधैक-कुटुम्ब जैनशासनाम्बर - परिपूर्णचन्द्र सकलागम-तत्त्व-पदार्थ-शास्त्र-विस्तर वचनाभिराम गुण-रत्न- विभूषण गोपर्णान्द निनोरेगिनिस प्पडं दारेगलिल्ले - गाणेनिला [ तला ] प्रदालू ।। १५ ।। न्मान दानिय गुण - तङ्गलं । दान - शक्ताभिमान - शक्ति विज्ञान-शक्ति सले गोपणन्दिय || १६ || ११७ Jain Education International For Private & Personal Use Only 1138 11 www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy