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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ८५ लेख में यह सम्वत् सिद्धार्थि सम्वत्सर कहा गया है पर मिलान करने से शक सं० १०४१ विकारी और शक सं० १०६१ सिद्धार्थो पाया जाता है । लेख में सम्वत् की भूल 1 ५२ (१४२ ) उसी मण्डप में द्वितीय स्तम्भ पर ( शक सं० १०४१ ) ( पूर्व्वमुख ) श्रीमत्परमगम्भीर - स्याद्वादामोघलान्छनं । जीयाले क्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥ स्वस्त्यनवरत प्रबल रिपुबल विष समरावनीमहामहारिसंहारकरणकारणप्रचण्डदण्डनायक मुखदर्पणकर्णे जप कुभृत्कुलिश जिनधर्म्महर्म्य माणिक्य कलश मलयजमिलितकास्मीर कालागरुधूपधूमध्यामलीकृत जिनानागार । निर्विकार मदनमनोहराकार | जिनगन्धोदकपवित्रीकृतोत्तमाङ्ग वीरलक्ष्मीभुजङ्गनाहाराभय भैषज्यशास्त्रदानविनोद जिनधर्मकथाकथनप्रमादनुमप्प श्रीमतुबलदेवदण्डनायकनगर्द || स्थिरने बापमराद्रियिन्दवधिकं गम्भीरने बाप्पु सागरदिन्दग्गलमेन्तु दानिये सुरोवजक्के मारण्डलम् । सुरराजङ्गे येन्दु कीर्त्तिपुदुक्य कोण्डकरि सन्ततं धरेयेल्लं बलदेवमात्यन निला लो कैक विख्यातनं ॥ २ ॥ बलदेव दण्डनायकनलङ्घ्यभुजबलपराक्रमं मनुचरितं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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