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८४ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख आजगज्जननि योडवुट्टिदं ।।
भाविसिपञ्चपदङ्गलनोवदे परिदिक्कि मोहपासद तोडरं । देव-गुरु-सन्निधानदला-विभु बलदेवनमरगतियं पडेदं ॥ १२ ॥
सकवर्ष १०४५नेय सिद्धार्थ संवत्सरद मार्गशिरशुद्धपाडिव सोमवारदन्दु मोरिङ्ग रेय तीर्थदलु सन्यसनविधियिं मुडिपिद ।।
आतन जननि नागियकनु एचियक्कनु परोक्षविनयक्के कब्बप्पुनाडोल प्रोम्मालिगेय हललुपहसालेय माडिसि तम्म गुरुगल प्रभाचन्द्रसिद्धान्त-देवर कालं कर्चिधारापूर्वकं माडिकोट्टरु पारेयरेयुमं ा केरेय मूडण देसेयलु खण्डुग बेदले ॥
इस लेख में किसी बल्ल व बलण नामक धर्मवान् पुरुष के सन्यासविधि से शरीर त्याग करने पर उसकी माता और भगिनी द्वारा उसकी स्मृति में एक पदृशाला (वाचनालय) स्थापित करने और उसके चलाव के लिए कुछ ज़मीन दान करने का उल्लेख है । बल्लण के वश का यह परिचय दिया गया है कि वह एक बड़े पराक्रमी दण्डनायक बलदेव और उनकी पत्नी बाचिकब्बे का पौत्र और धर्मवान् नागदेव और उसकी स्त्री नागियक का पुत्र था। उसकी भगिनी का नाम एचियक्के था। बल्लया ने शक सं० १०४१ मगसिर सुदि १ सोमवार को शरीर त्याग किया। इस के पश्चात् उक्त दान दिया गया और यह लेख लिखा गया । लेख के द्वितीय पद्य में प्रभाचन्द्रदेव का उल्लेख है। ]
१ सिद्धार्थ ।
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