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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख शुभलक्षणे गङ्गराजनाङ्गने तानभिनवरुम्मिणिये नली
ऋभुवनदोल पोल्वरोलरे लक्ष्मीमतियं ॥८॥
श्रीमूलसङ्घद देशियगणद पुस्तकगच्छद श्रीमत्-शुभचन्द्र सिद्धान्तदेवर गुड्डि दण्डनायकिति लक्कव्वे सक वर्षे १०४४ नेय प्रवसम्वत्सरद शुद ११ शुक्रवारदन्दु सन्यसनं गेयदु समाधिवेरसि मुडिपि देवलोकके सन्दल ।। ___ परोक्षविनेयके निषिधिगेयं श्रीमदण्डनायक-गङ्गराज निलिसि प्रतिष्ठेमाडि महादानमहापुजेगलं माडिदरु मङ्गल महा श्री श्री ।।
[ इस लेख में दण्डनायक गङ्गराज की धर्मपत्नी लक्ष्मीमति के गुण, शील और दान की प्रशंसा की गई है। इस धर्मपरायण साध्वी महिला ने शक सं० १०४४ में संन्यास-विधि से शरीर त्याग किया। वह मूलसंघ पुस्तक-गच्छ देशीगण के शुभचन्द्राचार्य की शिष्या थी। अपनी साध्वी स्त्री की स्मृति में दण्डनायक गङ्गराज ने यह निषद्या निर्माण कराई।
४८ (१२८) उसी मण्डप में चतुर्थ स्तम्भ पर
(शक सं० १०४२) ( उत्तरमुख ) भद्रमस्तु जिनशासनस्य ।।..
जयतु दुरितदूरः तीरकूपारहारः
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