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५२ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख
श्री प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवगुडुं पेगडे चावराज बरेदं ।।
रूवारिहोयसलाचारियमगं वर्द्धमानाचारि बिरुदरूवारिमुखतिलकं कण्डरिसिद ।।
[ इस लेख में 'मार' और 'माकणब्बे' के सुपुत्र 'एचि' व 'एचिगाङ्क' की भार्या 'पाचिकब्बे' की धर्मपरायणता और अन्त में संन्यास. विधि से स्वर्गारोहण का उल्लेख है । पाचिकब्बे ने अनेक धार्मिक कार्य किये । उन्होंने बेल्गोल में अनेक मन्दिर बनवाये। शक सं० १०४३, आषाढ़ सुदि ५ सोमवार को इस धर्मवती महिला का स्वर्गवास हो जाने पर उसके प्रतापी पुत्र महासामान्ताधिपति, महाप्रचण्ड दण्डनायक, विष्णुवर्द्धन महाराज के मंत्री गङ्गराज ने अपनी माता की स्मारक यह निषद्या निर्माण कराई। ___ यह लेख प्रभाचन्द्र सिद्धान्त देव के गृहस्थ शिष्य चावराज का रचा हुआ और होय सलाचारि के पुत्र वर्धमानाचारि द्वारा उत्कीर्ण है ]
४५ (१२५) एरडु कट्टे वस्ति के पश्चिम की ओर
- एक पाषाण पर।
(लगभग शक सं० १०४०) श्रीमत्परमगम्भीर-स्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ।। १ ॥ भद्रमस्तु जिनशासनाय सम्पद्यतां प्रतिविधानहेतवे । अन्यवादिमदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसे ।।२।।
स्वस्ति 'समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वर द्वारवतीपुर वराधीश्वरं यादवकुलाम्बर धुमणि सम्यक्तचूडामणि मलपरोल
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