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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । ३५ नानून-नय-प्रमाणनिपुणो देवेन्द्र-सैद्धान्तिकः ॥८॥ : अजनि महिपचूडा-रत्नराराजिताघ्रि विजित-मकरकेतूदण्ड-दाईण्ड-गर्वः । कुनय-निकर-भूद्धानीक-दम्भोलि-दण्ड स्सजयतु विभुधेन्द्रोभारती-भाल-पट्टः ॥ ६॥ तच्छिष्यः कलधौतनन्दिमुनिपस्सिद्धान्त-चक्रेश्वरः पारावार-परीत-धारिणि-कुल-व्याप्तोरुकीर्तीश्वरः । पञ्चाक्षोन्मद-कुम्भि-कुम्भ-दलन-प्रोन्मुक्त मुक्ताफलप्रांशु-प्राञ्चितकेसरी बुधनुतो वाकामिनी-वल्लभः ॥ १० ॥ अवर्गे रविचन्द्र-सिद्धान्तविदर्सम्पूर्णचन्द्रसिद्धान्तमुनिप्रवररवरवर्गे शिष्यप्रवर श्रीदामनन्दि-सन्मुनि-पतिगल।११॥ बोधित-भव्यरस्त-मदनर्मद-वर्जित-शुद्ध-मानसर श्रीधरदेवरेम्बरवर्गप्र-तनूभवरादरा यशश्रीधरर्गाद शिष्यरवरील नेगल्दर्मलधारिदेवरु श्रीधरदेवरु नत-नरेन्द्र-ति (कि)रीट-तटार्चितक्रमर ।१२। आनम्नावनिपाल-जालकशिग-रत्न-प्रभा-भासुरश्रीपादाम्बुरुह-द्वयो वर-तपोलक्ष्मीमनोरञ्जनः । मोह-व्यूह-महीद्ध-दुर्द्धर-पविः सच्छीलशालिजंग ख्यातश्रीधरदेव एष मुनिपो भाभाति भूमण्डले ॥१३॥ तच्छिष्यर ।। भव्याम्भोरुह-षण्ड-चण्ड-किरण: कापूर-हार-स्फुरकीर्तिश्रीधवलीकृताखिल दिशाचक्रश्चरित्रोन्नतः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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