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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । ३३ श्रीपद्मनन्दिपण्डित पण्डित-जन- हृदय - कुमुदशीतकर ||१८|| पण्डित - समुदयवति शुभचन्द्र- प्रिय शिष्य भवति - सुदयास्ति । श्री पद्म नन्दि- पण्डित-यमीश भवदितर- मुनिषुनालोके | १८ | श्रीमदध्यात्मिशुभचन्द्रदेवस्य स्वकीयान्तेवासिना पद्म नन्दि- पण्डित - देवेन माधवचन्द्रदेवेन च परोक्ष-विनय-निमित्तं निषधका कारयिता ॥ भद्रं भवतु जिनशासनाय || [ इस लेख में शुभचन्द्र मुनि की श्राचार्य परम्परा और उनके स्वर्गवास की तिथि दी हुई है । कुन्दकुन्दान्वय, मूल संघ, पुस्तक गच्छ, देशी गण में गुरुशिष्य परम्परा से मेघचन्द्र त्रैविद्य, वीरनन्दि, अनन्त कीर्त्ति', मलधारि रामचन्द्र और शुभचन्द्र मुनि हुए । शुभचन्द्र मुनि का शक सं० १२३५ श्रावण कृष्ण १४ को स्वर्गवास हुआ । उनके शिष्य पद्मनन्दि पण्डितदेव और माधवचन्द्र ने उनकी निषद्या निर्माण कराई | लेख में रामचन्द्र मुनि की श्राचाय परम्परा इस प्रकार दी है। कुलभूषण, माघनन्दि व्रती, शुभचन्द्र त्रैविद्य, चारुकीर्त्ति पण्डित, माघनन्दि भट्टारक, श्रभयचन्द्र, बालचन्द्र पण्डित और रामचन्द्र । ] C ४२ (६६ ) महानवमी मण्डप के उत्तर में एक स्तम्भ पर ( शक सं० १०८८ ) ( पूर्व मुख ) श्रामत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयास्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ।। १ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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