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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ।
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श्रीपद्मनन्दिपण्डित पण्डित-जन- हृदय - कुमुदशीतकर ||१८|| पण्डित - समुदयवति शुभचन्द्र- प्रिय शिष्य भवति
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सुदयास्ति । श्री पद्म नन्दि- पण्डित-यमीश भवदितर- मुनिषुनालोके | १८ | श्रीमदध्यात्मिशुभचन्द्रदेवस्य स्वकीयान्तेवासिना पद्म नन्दि- पण्डित - देवेन माधवचन्द्रदेवेन च परोक्ष-विनय-निमित्तं निषधका कारयिता ॥ भद्रं भवतु जिनशासनाय ||
[ इस लेख में शुभचन्द्र मुनि की श्राचार्य परम्परा और उनके स्वर्गवास की तिथि दी हुई है । कुन्दकुन्दान्वय, मूल संघ, पुस्तक गच्छ, देशी गण में गुरुशिष्य परम्परा से मेघचन्द्र त्रैविद्य, वीरनन्दि, अनन्त कीर्त्ति', मलधारि रामचन्द्र और शुभचन्द्र मुनि हुए । शुभचन्द्र मुनि का शक सं० १२३५ श्रावण कृष्ण १४ को स्वर्गवास हुआ । उनके शिष्य पद्मनन्दि पण्डितदेव और माधवचन्द्र ने उनकी निषद्या निर्माण कराई | लेख में रामचन्द्र मुनि की श्राचाय परम्परा इस प्रकार दी है। कुलभूषण, माघनन्दि व्रती, शुभचन्द्र त्रैविद्य, चारुकीर्त्ति पण्डित, माघनन्दि भट्टारक, श्रभयचन्द्र, बालचन्द्र पण्डित और रामचन्द्र । ]
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४२ (६६ )
महानवमी मण्डप के उत्तर में एक स्तम्भ पर ( शक सं० १०८८ )
( पूर्व मुख )
श्रामत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयास्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ।। १ ।।
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