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श्रवणबेल्गोल के स्मारक समस्त दक्षिण भारत में ऐसे बहुत ही कम स्थान होंगे जो प्राकृतिक सौन्दर्य में, प्राचीन कारीगरी के नमूनों में ब धार्मिक
और ऐतिहासिक स्मृतियों में 'श्रवणबेल्गुल' की बराबरी कर सके। आर्य जाति और विशेषतः जैन जाति की लगभग अढाई हज़ार वर्ष की सभ्यता का इतिहास यहाँ के विशाल और रमणीक मन्दिरों, अत्यन्त प्राचीन गुफाओं, अनुपम उत्कृष्ट मूर्तियों व सैकड़ों शिलालेखों में अङ्कित पाया जाता है। यहाँ की भूमि अनेक मुनि-महात्माओं की तपस्या से पवित्र, अनेक धर्म-निष्ठ यात्रियों की भक्ति से पूजित और अनेक नरेशों और सम्राटों के दान से अलंकृत और इतिहास में प्रसिद्ध हुई है।
यहाँ की धार्मिकता इस स्थान के नाम में ही गर्भित है। 'श्रवण' ( श्रमण ) नाम जैन मुनि का है और 'बेल्गुल' कनाड़ा भाषा के 'बेल' और 'गुल' दो शब्दों से बना है। 'बेल' का अर्थ धवल व श्वेत होता है और 'गुल' (गोल) कोल' का अपभ्रंश है जिसका अर्थ सरोवर है। इस प्रकार श्रवणबेल्गुल का अर्थ जैन मुनियों का धवल-सरोवर होता है। इसका तात्पर्य संभवतः उस रमणीक सरोवर से है जो ग्राम के बीचोंबीच अब भी इस स्थान की शोभा बढ़ा रहा है। सात-आठ सौ
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