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________________ १८५ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । ... भुजावलेपमल... कृत्वा ... गं स्वयं ... • गुत्तियगङ्गभूपति नालम्बान्तकः ।। ..... यियसन्मुखं युधि...... गादस्मय ...... प्रतिगज...... विक्रमं ॥ त्पलमिव नालम्बान्तकः ... भूलोकादनेक-द्र... नेकबन्धान्धक... चोल-पल्लव... का नन्दतार... श्रीमारसिंह - चि... तिलक क्षेत्र-चन्द्रस्य...चन्द्र .. य्र्य्यर...... दर्प...गं सं... गं...६.रः ।।... वद्रोषणा ...न्मद्दाविजयोत्सवे सिंहासना-ध... ... ( उत्तरमुख) याव दैत्येन्द्रैर्मधुकैटभप्रभृतिभिर्ध्वस्तैर्मुरद्वे... किं मायारिभिरित्यमुत्थितमिति क्ष्मातङ्क- शङ्काकृ... ...लैर्भरगासुरस्य वसुधानन्दाश्रुमिश्शि... दार्थैरकरोत्सरागमवनीचक्रं नालम्बान्तकः । ......... ..... इत्याधिष्कृत- वीर-सङ्गर - गिरः चालुक्य- चूडामणे राजादित्य- हरेद्देवानिरजनिश्रीगङ्ग-चूडामणि । ... ...... ( प्रथम ८ पंक्तियाँ अस्पष्ट हैं ) . ज्ञ-क्षमाभृतः 3...fa...faar............afa II - गुप्त्तिय-गङ्ग भूपमितियं विश्वं. .. कृता......तिं पतिमह .....वष्टभ्यदुष्टावनिप- कुल मिलामिन्द्रराज...... कुम्ब श्री गङ्ग-चूड़ामणिरिति धरणी स्तौतियं ......रसम्प्रति मारसिंह नृपतिर्व्विक्रान्त न . मिश्रीकृत म... क-वीर-विस्मय-तेज.... ...... 1.s ... ..... दल... यक - च्छत्र. .. कीर्ति : :: 11 Jain Education International ......... ... For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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