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सत्य की खोज : अनेकास के आलोक में
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वह पुद्गल ही है । वही विविध रूपों में परिणत होकर हमारे सामने प्रस्तुत होता है । उसमें जीव का भी योग होता है, किन्तु उसका मुख्य पात्र पुद्गल ही है ।
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अस्तित्व में परिवर्तित होने की क्षमता है। जिसमें परिवर्तित होने की क्षमता नहीं होती, वह दूसरे क्षण में अपनी सत्ता को बनाए नहीं रख सकता । अस्तित्वं दूसरे क्षण में रहने के लिए उसके अनुरूप अपने आप में परिवर्तन करता है और तभी वह दूसरे क्षण में अपनी सत्ता को बनाए रख सकता है। एक परमाणु अनन्तगुना काला है । वही परमाणु एकगुना काला हो जाता है। जो एकगुना काला होता है, वह कभी अनन्तगुना काला हो जाता है । यह परिवर्तन बाहर से नहीं आता। यह द्रव्यगत परिवर्तन है । इसमें भी अनन्तगुणहीन और अनन्तगुण अधिक तारतम्य होता रहता । अनन्तकाल के अनन्त क्षणों और अनन्त घटनाओं में किसी भी द्रव्य को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए अनन्त परिणमन करना आवश्यक हैं। यदि उसका परिणमन अनन्त न हो तो अनन्तकाल में वह अपने अस्तित्व को बनाए नहीं रख
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अस्तित्व में अनन्त धर्म होते हैं, कुछ अव्यक्त और कुछ व्यक्त । प्रश्न हुआ कि क्या घास में घी है ? इसका उत्तर होगा घास में घी है, किन्तु व्यक्त नहीं है । क्या दूध में घी है? दूध में घी है, पर पूर्ण व्यक्त नहीं है। दूध को बिलोया या दही बनाकर बिलोया, घी निकल आया । अव्यक्त धर्म व्यक्त हो गया । द्रव्य में 'ओघ' और 'समुचित' – ये दो प्रकार की शक्तियां काम करती हैं। 'ओघ' नियामक शक्ति है । उसके आधार पर कारण-कार्य के नियम की स्थापना की जाती है । कारण कार्य के अनुरूप ही होता है । कारण अव्यक्त रहता है, कार्य व्यक्त होता है । अब आप पूछें कि घास में घी है या नहीं? तो उत्तर होगा - 'ओघ' शक्ति की दृष्टि से है, किन्तु 'समुचित' शक्ति की दृष्टि से नहीं है। पुद्गल द्रव्य में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श- ये चारों मिलते हैं । गुलाब के फूल में जितनी सुगंध है, उतनी ही दुर्गन्ध है। किंतु उसमें सुगंध व्यक्त है और दुर्गन्ध अव्यक्त । चीनी जितनी मीठी है, उतनी ही कड़वी है । किंतु उसमें मिठास व्यक्त है और कड़वाहट अव्यक्त | सड़ान में जितनी दुर्गन्ध है, उतनी सुगन्ध भी छिपी हुई है। राजा जितशत्रु नगर से बाहर जा रहा था। मंत्री सुबुद्धि उसके साथ था । एक खाई आई। उसमें जल भरा था। वह कूड़े-करकट से गंदा हो रहा था । उसमें मृत पशुओं के कलेवर सड़ रहे थे। दूर तक दुर्गन्ध फूट रही थी । राजा ने कपड़ा निकाला और नाक को दबा लिया । 'कितनी दुर्गन्ध आ रही है ।' राजा ने मंत्री की ओर मुड़कर कहा । मंत्री तत्त्ववेत्ता था । उसने
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