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________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में बाहर से सुप्त । एक व्यक्ति आया और चिल्लाया- 'भूपेश ! क्या कर रहे हो ? उठो और संभलो ।' वह बहुत जोर से चिल्लाया । किन्तु भूपेश को कोई पता नहीं चला। उसने भूपेश का हाथ पकड़ झकझोरा, तब भूपेश ने आंखें खोली और कहा - 'कहिए, क्या बात है ? ' आगन्तुक बोला- 'मुझे पूछते हो क्या बात है ? यहां आंख मूंदे बैठे हो। तुम्हें पता नहीं, तुम्हारे इकलौते बेटे को सांप काट गया और वह तत्काल ही मर गया ।' भूपेश ने कहा- 'जो होना था सो हुआ ।' आगन्तुक बोला- 'अरे ! तुम कैसे पिता हो ? मैंने तो दुःख का संवाद सुनाया और तुम वैसे ही बैठे हो ? लगता है कि पुत्र से तुम्हें प्यार नहीं है। तुम्हें शोक क्यों नहीं हुआ ? तुम्हें चिंता क्यों नहीं हुई? तुम्हें दुःख क्यों नहीं हुआ ? तुम्हारी आंखों से दो आंसू क्यों नहीं छलक पड़े ?' भूपेश ने कहा- 'जिस दिन बेटा आया था तो मुझे पूछकर नहीं आया था और आज वह लौट गया तो मुझे पूछ कर नहीं लौटा। उस दिन मैंने कुछ नहीं किया था, आज भी मुझे कुछ नहीं करना है। यह जन्म और मरण की अनिवार्य श्रृंखला है, जिसमें मेरा हाथ नहीं है । मनुष्य आता है, चला जाता है। तुम्हें इतनी क्या चिन्ता है ?' आगन्तुक चुप हो गया । उसके पास बोलने के लिए कुछ नहीं बचा । कुछ क्षण रुककर वह बोला 'अब उसकी चिता जलानी है, साथ चलो।' भूपेश उसके साथ गया । पुत्र की अर्थी श्मशान में पहुंची । चिता में पुत्र को सुला, आग लगाकर कहा - 'बेटे, तुम जिस घर से आए थे, उसी घर में जा रहे हो । आज से हमारा सम्बन्ध विच्छिन्न हो गया है।' यह घटना का केवल ज्ञान है। इसके साथ संवेदन का कोई तार जुड़ा हुआ नहीं है। जो घटित हुआ, उसे उसी रूप में स्वीकार किया गया है । मनुष्य जब इस स्थिति में पहुंच जाता है, तब ज्ञानी की भूमिका प्रशस्त हो जाती है । भगवान् महावीर की वाणी में इसी का नाम संवर है। जहां केवल ज्ञान रहता है, केवल आत्मा की अनुभूति रहती है, वहां विजातीय तत्त्व का आकर्षण बन्द हो जाता है । कर्म का वर्तुल ४४ आत्मा की दो स्थितियां हैं - एक अस्वीकार की और दूसरी स्वीकार की । केवल ज्ञान का अनुभव होना अस्वीकार की स्थिति है। ज्ञान आत्मा का स्वभाव है । स्वभाव की अवस्था में विजातीय तत्त्व का कोई प्रवेश, संक्रमण या प्रभाव नहीं होता । संवेदन स्वीकार की स्थिति है। संवेदन के द्वारा हमारा बाह्य जगत् के साथ सम्पर्क होता है । हम बाहर से कुछ लेते हैं और उसे अपने साथ जोड़ते हैं। जोड़ने की भावधारा का नाम 'आश्रव' और विजातीय तत्त्व के जुड़ने का नाम 'बन्ध' है । आत्मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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