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सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में
पर अपनी ‘उत्पादक श्रम' की धारणा से वेश्यावृत्ति को बाहर निकाल दिया। जैसा कि प्रो. सैलिगमैन (Saligman) ने कहा है-'सच्ची आर्थिक क्रिया परिणामत सदाचारिक होना चाहिए।' इस प्रकार अर्थशास्त्री आर्थिक नीति के निर्माण में नीतिशास्त्र की उपेक्षा नहीं कर सकता।
इसी प्रकार अर्थशास्त्र का नीतिशास्त्र पर भी बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। आर्थिक परिस्थितियां मनुष्य के चरित्र तथा आचार-विचार पर गहरा प्रभाव डालती हैं । अमुक व्यक्ति का आचार कैसा होगा, इस बात से निश्चित होता है कि वह अपनी आजीविका कैसे कमाता है । इस प्रकार अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध
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महावीर ने कहा-'इच्छा का परिमाण नहीं करने वाला मनुष्य अधर्म से आजीविका कमाता है और इच्छा का परिमाण करने वाला मनुष्य धर्म से आजीविका कमाता हैं। अधर्म या धर्म से आजीविका कमाने में आर्थिक परिस्थितियां निमित्त बनती हैं, किन्तु उनका उत्पादन कारण अनाशक्ति तथा धर्मश्रद्धा का तारतम्य है।
'इच्छा-परिमाण' निष्कर्ष सापेक्ष में इस प्रकार प्रस्तुत किए जा सकते हैं१. न गरीब और न विलासिता का जीवन । २. धन आवश्यकता-पूर्ति का साधन है, साध्य नहीं। धन मनुष्य के लिए है,
मनुष्य धन के लिए नहीं है। ३. आवश्यकता की सन्तुष्टि के लिए धन का अर्जन किन्तु दूसरों को हानि
पहुंचाकर अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि न हो, इसका जागरूक प्रयत्न । ४. आवश्यकताओं, सुख-सुविधाओं और उनकी संतुष्टि के साधनभूत
धन-संग्रह की सीमा का निर्धारण।। धन के प्रति उपयोगिता के दृष्टिकोण का निर्माण कर संग्रहित धन में
अनाशक्ति का विकास। ६. धन के संतुष्टि-गुण को स्वीकार करते हुए आध्यात्मिक विकास की दृष्टि
से उसकी असारता का अनुचिन्तन । ७. विसर्जन की क्षमता का विकास। .
१. एम. एल. सेठ : आधुनिक अर्थशास्त्र, पृ. ३३ ।
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