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________________ सत्य की खोज : अनेकान्त के आलोक में उच्छंखल प्रवृत्तियों से बचना इष्ट है तो यह अनिवार्यता और अधिक तीव्र हो जाती है। इसी अनिवार्यता की अनुभूति करके ही महावीर ने समाज के सामने 'इच्छा-परिमाण' का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इस आदर्श में अनिवार्यताओं और सुविधाओं को छोड़ने की शर्त नहीं है और विलासितापूर्ण आवश्यकताओं की परम्परा को चालू रखने की स्वीकृति भी नहीं है । ‘इच्छा-परिमाण' के सिद्धांत में अर्थशास्त्रीय आवश्यकता-वृद्धि के सिद्धांत से मौलिक भिन्नता दो विषयों की है। पहली भिन्नता यह है-अर्थशास्त्र विलासिताओं के उपभोग का समर्थन करता है। उसके समर्थन में निम्न तर्क प्रस्तुत किए जाते हैं १. विलासिताओं के उपभोग से सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति होती है। २. कर्मशीलता को प्रोत्साहन मिलता है। ३. जीवन-स्तर ऊंचा होता है। ४. धन संग्रह होता है। संकट के समय वह (आभूषण आदि) सहायक सिद्ध होता है। ५. कला-कौशल, कारीगरी तथा उद्योग-धंधों को प्रोत्साहन मिलता है। सब अर्थशास्त्री इन विलासिताओं के उपभोग के सिद्धान्त का समर्थन नहीं करते । उनका दृष्टिकोण यह है कि विलासिताओं के उपयोग से १. वर्ग-विषमता (class inequality) बढ़ती है। २. उत्पादन-कार्यों के लिए पूंजी की कमी हो जाती है। ३. निर्धन वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव होता है, द्वेष तथा घृणा की वृद्धि होती विलासिता के प्रति यह दृष्टिकोण धर्म के दृष्टिकोण से भिन्न नहीं है, किन्तु विलासिता के समर्थन का अर्थशास्त्रीय दृष्टिकोण उससे सर्वथा भिन्न है। दूसरी भिन्नता यह है कि अर्थशास्त्र में नैतिक नियमों की अनिवार्यता स्वीकृत नहीं है । नैतिक नियमों की अवेहलना उसका उद्देश्य नहीं है, किन्तु यह उसकी प्रकृति का प्रश्न है। उसकी प्रकृति उपयोगिता है। उपयोगिता का अर्थ है-आवश्यकता को संतुष्ट करने की क्षमता । नैतिक नियम के अनुसार शराब मनुष्य के लिए लाभदायी नहीं है, इसलिए वह उपयोगी भी नहीं है। वही वस्तु उपयोगी हो सकती है जो लाभदायी हो । जो प्रवृत्तिकाल और परिणामकाल—दोनों में सुखद न हो, वह लाभदायक नहीं हो सकती और जो लाभदायक नहीं हो सकती वह उपयोगी नहीं हो सकती । अर्थशास्त्र में उपयोगिता की परिभाषा नैतिकता की परिभाषा से भिन्न है। उसमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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